१. “ मैं ”
मैं-मैं तू करके हुआ, भौतिक सुख में लीन
अहम् भाव और देह की, रहा बजाता बीन
रहा बजाता बीन , नहीं ‘मैं’ को पहचाना
परम तत्व को भूल ,जोड़ता रहा खजाना
क्या दिखलाकर दाँत, करेगा केवल हैं हैं ?
जब पूछें यमराज, कहाँ बतला तेरा मैं ||
२. “ तुम “
तुम-मैं मैं-तुम एक है , परम ब्रम्ह का अंश
जाति- धर्म इसका नहीं , और न कोई वंश
और न कोई वंश ,यही तो अजर - अमर है
अविनाशी है रूह , और काया नश्वर है
कर इसका अहसास,ह्रदय में रुमझुम रुमझुम
परम ब्रम्ह का अंश , एक है तुम-मैं मैं-तुम ||
३. “ हम “
‘हम’ नन्हा-सा शब्द है,अणु जैसा ही जान
शक्ति कल्पनातीत है,‘हम’ से कौन महान
‘हम’ से कौन महान, एकता का परिचायक
‘हम’ देता सुख शांति, रहा हरदम ‘हम’ नायक
जीना सब के साथ , नहीं रहना तन्हा-सा
अणु जैसा ही जान,शब्द है ‘हम’ नन्हा-सा ||
अरूण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बढ़िया रचना पर हार्दिक बधाइयाँ |
आदरणीय गुरुदेव प्रेरक दार्शनिक प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई
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