For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

साथ (अखंड गहमरी)

अपनो से दूर

अपने पराये

पराये अपने

चुटकी भर

सिंदूर से

पास मेरे

तन मन

अर्पण

मैं सुखी

उसकी खुशी

हर चाहते

सपने उमंग

चेहरे पर तेज

हर पल साथ

साँसो के साथ

मेरे अपने

उसके अपने

निर्स्‍वाथ सेवा

हम दो शब्‍द

प्‍यार के नहीं

जज्‍बातो से खेलते

हर सपने तोड़ते

शिव है हम

मगर वह सीता

सह गयी जुल्‍म

मगर ना मिला

राम को चैन

पुरूर्षाथ अधूरा

वह अनेक रूपों में

आज तक

चल रही

निभा रही

आशा

विश्‍वास

निर्स्‍वाथ

हर रिश्‍ते, हर फर्ज

मेरे साथ

दिखा रही

अँधेरो में रास्‍ता

कोशिश बचाने की

सम्‍मान दिलाने की

हमारी अर्धागिनी

मेरी जीवन संगिनी

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 633

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Meena Pathak on January 9, 2014 at 12:28pm

बहुत सुन्दर, लाजवाब रचना हेतु ढेरों बधाई आप को आ० अखंड जी 

Comment by savitamishra on January 9, 2014 at 10:41am

बहुत बढ़िया

Comment by Akhand Gahmari on January 8, 2014 at 11:06pm

आदरणीया coontee mukerji  जी मार्गदर्शन एवं उत्‍साहवर्धन के सदैव आकांक्षी है प्रणाम स्‍वीकार करें

Comment by Akhand Gahmari on January 8, 2014 at 11:06pm

आदरणीय Abhinav Arun जी मार्गदर्शन एवं उत्‍साहवर्धन के सदैव आकांक्षी है प्रणाम स्‍वीकार करें

Comment by Akhand Gahmari on January 8, 2014 at 11:05pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी मार्गदर्शन एवं उत्‍साहवर्धन के सदैव आकांक्षी है प्रणाम स्‍वीकार करें

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 8, 2014 at 9:30pm

आदरणीय अखण्ड भाई , बहुत सुन्दर रचाना की है , बधाइयाँ स्वीकार करें ॥

Comment by coontee mukerji on January 8, 2014 at 6:27pm

बहुत सुंदर...नारी मन की अभिव्यक्ति. आपको हार्दिक बधाई.

Comment by Abhinav Arun on January 8, 2014 at 5:26pm
मधुर मनोरम सुन्दर रचना अखंड श्री हार्दिक बधाई !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service