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तिश्नगी में न सराबों में है
ताब जो मेरे इरादों में है
चहचहाते हुये पंछी ये कहें
ज़िन्दगी अब भी खराबों में है
ध्यान से पहले सुनो फिर समझो
क्या हकीकत मेरे दावों में है
बादलों की ये शरारत है जो
चाँद का नूर हिजाबों में है
अब तलक तेरी ज़ुबाँ पे थी वो
बात अब मेरे सवालों में है
काम आयेगी अकीदत आखिर
ऐसी तासीर दुआओं में है
ताब= शक्ति, सराब= मरीचिका, खराबा= खण्डहर
तासीर= असर, अकीदत= विश्वास
-मौलिक तथा अप्रकाशित
Comment
आदरणीय वीनस जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
तिश्नगी में न सराबों में है
ताब जो मेरे इरादों में है
वाह ज़नाब क्या कहने ...
आदरणीय सौरभ सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया
भाई राम शिरोमणि जी आपका आभार
आदरणीया महिमा जी रचना को मान देने के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया
भाई जीतेन्द्र जी आपकी सक्रिय उपस्थिति हमेशा उत्साहित करती है आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय डॉ आशुतोष सर रचना की सराहना के लिये आपका आभार
आदरणीय गिरिराज सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय अजय जी आपका आभार
भाई सिज्जू जी,ग़ज़ल बढिया हुई है
बधाई
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