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अभिनय कर तो लूँ

पर कच्ची हूँ

माँ पकड़ ही लेती है छुपाये गए

झूठे हाव भाव...

चुप रह कर सिर्फ सर हिला कर

उनकी बातों का जवाब देना

छत पर घंटों अकेले बिताना

रात भर जागना

और सुबह लाल आँखों से

माँ से कहना-

कुछ नहीं कल गर्मी बहुत थी

नींद नहीं आयी...

माँ ने भी कुछ न कह

बस पास बिठा कर कहा

चाय पियो आराम मिलेगा

वो तो समझ गयी...

काश मैं भी वो समझूं

जो वो मुझसे रोज़ न कहते हुए भी

अक्सर कह देती है

समझती हूँ माँ...

बस ये दिल नहीं समझता

इसे समझा दो.....माँ !!!!   

(मौलिक एव अप्रकाशित)

प्रियंका.......

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Comment by sarika choudhary on January 14, 2014 at 1:37pm

अभिनय कर तो लूँ

पर कच्ची हूँ

माँ पकड़ ही लेती है छुपाये गए

झूठे हाव भाव...

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 13, 2014 at 10:54pm

माँ तो माँ ही होती है , बच्चों के सारे सुख-दुःख समझती है , बहुत बढ़िया रचना बधाई स्वीकारें आदरणीया प्रियंका जी

Comment by coontee mukerji on January 13, 2014 at 10:27pm

मन की बात लिखना कागज़ पर और मां से छुपाना इन दिनों सब चलताहै.....सादर

Comment by vijay nikore on January 13, 2014 at 6:22pm

मातृत्व की एक खूबी ही यही है कि माँ सब कुछ समझती है,

मन की त्रासदी ही यही है कि वह कितना-कुछ नहीं समझता ....

आप अपनी रचना में इसका बहुत ही जीवंत काव्यमय वर्णन

करने में पूर्णता सफ़ल हुई हैं।

 

आपको हार्दिक बधाई, आदरणीया प्रियंका जी।

 

सादर,

विजय निकोर


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 13, 2014 at 12:51pm

इस उत्कृष्ट भावाभिव्यक्ति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई !

Comment by Meena Pathak on January 13, 2014 at 12:26pm

माँ अपने बच्चों की हर बात बिन कहे ही समझ लेती है प्रियंका जी ,, सुन्दर प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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