(एक)
तुम क्या चुकाओगे
मेरी मेहनत की कीमत
मेरी जवानी
मेरे सपने
मेरी उम्मीदें
सब-कुछ तो दफ्न है
तुम्हारी इमारतों में।
(दो)
जब चलती हैं
झुलसा देने वाली गर्म हवाएँ
कवच बन जातीं है
यही सूरज की किरणें
हमारे लिए ।
मुसलधार बारिश
जब हमारे बदन को छूती है
फिर से खिल उठता है
हमारा तन
ऊर्जावान हो जाता है
जिस्म का रोम- रोम ।
हमारे पसीने की गंध
ला देती है गर्मी
पिघला देती है
कड़कड़ाती ठंड को ।
बदलता है मौसम
हमारे लिए
हम नहीं बदलते
मौसम के साथ ।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीया डॉ प्राची जी मार्गदर्शन के लिए आभार ...
बेहतर करने की कोशिश जारी है पर उस दिशा में ज़्यादा सफलता नहीं मिल पा रही है ।
कृपया इसी तरह मरदर्शन बनाये रखें ।
तुम क्या चुकाओगे
मेरी मेहनत की कीमत
मेरी जवानी
मेरे सपने
मेरी उम्मीदें
सब-कुछ तो दफ्न है
तुम्हारी इमारतों में।..................सार्थक सुन्दर क्षणिका
बदलता है मौसम
हमारे लिए
हम नहीं बदलते
मौसम के साथ ..................वाह बहुत सुन्दर भाव
फिर भी, दूसरी क्षणिका थोड़ी कथ्य सांद्रता की मांग करती सी लगी
इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई आ० नादिर खान जी
आदरणीय जितेंद्र जी,आदरणीय अखिलेश श्रीवास्तव जी,आदरणीय बृजेश जी एवं आदरणीय अरुण शर्मा जी, मेरे प्रयास को आप लोगों ने सराहा बहुत बहुत शुक्रिया | कोशिश सार्थक हुई ....
बहुत ही सुन्दर क्षणिकायें आदरणीय नादिर जी बहुत बहुत बधाई आपको
अच्छी क्षणिकाएँ हैं आदरणीय! आपको बहुत-बहुत बधाई!
आदरणीय नादिर भाई जी,
उच्च भाव , खूबसूरत शब्द संयोजन , पूरी रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें ॥
बदलता है मौसम
हमारे लिए
हम नहीं बदलते
मौसम के साथ ।.............आपकी लेखनी को नमन आदरणीय नादिर साहब
आदरणीया अन्नपूर्णा जी हौसला अफजाई के लिए तहेदिल से शुक्रिया .........
आदरणीय गुमनाम जी आपका बहुत शुक्रिया .......
आ0 नादिर भाई जी बधाई आपको इस सुंदर रचना के लिए ।
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