नियम/अनुशासन
सब आम लोगों के लिए है
जो खास हैं
इन सब से परे हैं
उन पर लागू नहीं होते
ये सब
ख़ास लोग तो तय करते हैं
कब /कौन/ कितना बोलेगा
कौन सा मोहरा
कब / कितने घर चलेगा
यहाँ शह भी वे ही देते हैं
और मात भी
आम लोग मनोरंजन करते हैं
आम लोगों का रेमोट
ख़ास लोगों के हाथों में होता है
वे नचाते हैं
आम लोग नाचते हैं.....
मगर हालात
हमेशा एक जैसे नहीं होते
और न ही बदलने में वक़्त लगता
बस !! एक हल्का सा झटका
और खिसकने लगती है
पैरों के नीचे से ज़मीन
फिर जैसे मुट्ठी से रेत
जितना ज़ोर लगाओ
उतनी ही तेजी से फिसलते हैं हालात .....
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
आदरणीय नादिर खान भाई , वर्तमान स्थिति को बयान करती आपकी रचना के लिये आपको बधाइयाँ ॥
जनाब राम शिरोमणी जी हौसला अफजाई का शुक्रिया एवं आभार ।
अदरणीय सौरभ जी हौसला अफजाई के लिए बहुत शुक्रिया। कृपया मार्गदर्शन बनाये रखें आज-कल मै अपनी रचनाओं को लेकर काफी संशय/असमंजस की स्थिति मे रहता हूँ । आप लोगों की टिप्पणी एवं मार्गदर्शन से अपनी रचनाओं में सुधार लाने की कोशिश कर रहा हूँ ।आप सभी सुधी जनों का आभार ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय नादिर भाई जी। । हार्दिक बधाई आपको
इस कविता में तथ्य को सटीक ढंग से प्रस्तुत करने का सुगढ़ प्रयास हुआ है. सफलता भी मिली है.
आपका रचनाकर्म आश्वस्त करता है नादिर भाई.
शुभेच्छाएँ
आदरणीय शिज्जु जी,श्याम नारायण जी, जितेंद्र जी अदरणीया सविता जी,मीना पाठक जी आप सबका बहुत शुक्रिया आपने कोशिश को सराहा ।
आभार ...........
मगर हालात
हमेशा एक जैसे नहीं होते
और न ही बदलने में वक़्त लगता
बस !! एक हल्का सा झटका
और खिसकने लगती है
पैरों के नीचे से ज़मीन
फिर जैसे मुट्ठी से रेत
जितना ज़ोर लगाओ
उतनी ही तेजी से फिसलते हैं हालात ...........जीवन की हकीकत को बयां करती पंक्तियां
बधाई स्वीकारें आदरणीय नादिर साहब
मगर हालात
हमेशा एक जैसे नहीं होते
और न ही बदलने में वक़्त लगता
बस !! एक हल्का सा झटका
और खिसकने लगती है
पैरों के नीचे से ज़मीन
फिर जैसे मुट्ठी से रेत
जितना ज़ोर लगाओ
उतनी ही तेजी से फिसलते हैं हालात .....
बहुत सुन्दर ......... बधाई आप को | सादर
बढ़िया रचना पर हार्दिक बधाइयाँ.................. |
बहुत बढ़िया
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