For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नियम/अनुशासन

सब आम लोगों के लिए है

जो खास हैं

इन सब से परे हैं

उन पर लागू  नहीं होते

ये सब

ख़ास लोग तो तय करते हैं

कब /कौन/ कितना बोलेगा

कौन सा मोहरा

कब / कितने घर चलेगा

यहाँ शह भी वे ही देते हैं  

और मात भी

आम लोग मनोरंजन करते हैं   

आम लोगों का रेमोट

ख़ास लोगों के हाथों में होता है  

वे नचाते हैं

आम लोग नाचते हैं.....

मगर हालात

हमेशा एक जैसे नहीं होते

और न ही बदलने में वक़्त लगता

बस !! एक हल्का सा झटका

और खिसकने लगती है

पैरों के नीचे से ज़मीन

फिर जैसे मुट्ठी से रेत

जितना ज़ोर लगाओ

उतनी ही तेजी से फिसलते हैं हालात ..... 


(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 560

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 16, 2014 at 10:56pm

आदरणीय नादिर खान भाई , वर्तमान स्थिति को बयान करती आपकी रचना के लिये आपको बधाइयाँ ॥

Comment by नादिर ख़ान on January 16, 2014 at 10:49pm

जनाब राम शिरोमणी जी हौसला अफजाई का शुक्रिया एवं आभार ।

Comment by नादिर ख़ान on January 16, 2014 at 10:46pm

अदरणीय सौरभ जी हौसला अफजाई के लिए बहुत शुक्रिया। कृपया मार्गदर्शन बनाये रखें आज-कल मै  अपनी रचनाओं को लेकर काफी संशय/असमंजस की स्थिति मे रहता हूँ । आप लोगों की टिप्पणी एवं मार्गदर्शन से अपनी रचनाओं में सुधार लाने की कोशिश कर रहा हूँ ।आप सभी सुधी जनों का आभार । 

Comment by ram shiromani pathak on January 14, 2014 at 9:28pm

बहुत सुन्दर प्रस्तुति  आदरणीय  नादिर भाई जी। । हार्दिक बधाई आपको 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 14, 2014 at 9:10pm

इस कविता में तथ्य को सटीक ढंग से प्रस्तुत करने का सुगढ़ प्रयास हुआ है. सफलता भी मिली है.
आपका रचनाकर्म आश्वस्त करता है नादिर भाई.
शुभेच्छाएँ

Comment by नादिर ख़ान on January 10, 2014 at 9:16pm

आदरणीय शिज्जु जी,श्याम नारायण जी, जितेंद्र जी अदरणीया सविता जी,मीना पाठक जी आप सबका बहुत शुक्रिया आपने कोशिश को सराहा ।

आभार ...........

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 9, 2014 at 9:36pm

मगर हालात

हमेशा एक जैसे नहीं होते

और न ही बदलने में वक़्त लगता

बस !! एक हल्का सा झटका

और खिसकने लगती है

पैरों के नीचे से ज़मीन

फिर जैसे मुट्ठी से रेत

जितना ज़ोर लगाओ

उतनी ही तेजी से फिसलते हैं हालात ...........जीवन की हकीकत को बयां करती पंक्तियां

बधाई स्वीकारें आदरणीय नादिर साहब

Comment by Meena Pathak on January 9, 2014 at 12:36pm

मगर हालात

हमेशा एक जैसे नहीं होते

और न ही बदलने में वक़्त लगता

बस !! एक हल्का सा झटका

और खिसकने लगती है

पैरों के नीचे से ज़मीन

फिर जैसे मुट्ठी से रेत

जितना ज़ोर लगाओ

उतनी ही तेजी से फिसलते हैं हालात ..... 

बहुत सुन्दर ......... बधाई आप को | सादर 

Comment by Shyam Narain Verma on January 9, 2014 at 11:51am
बढ़िया रचना पर हार्दिक बधाइयाँ..................
Comment by savitamishra on January 9, 2014 at 10:43am

बहुत बढ़िया

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service