यात्रा वर्णन - लोकग्राम से आनंदवन
देशाटन का जीवन में अनन्य महत्व है. इससे नई ऊर्जा, नए प्रदेशों की जानकरी, आत्मिक शांति प्राप्त होती है और लोक जीवन का परिचय होता है. कई ऐसे स्थान हैं जहां जाने से अदभूत सुख की प्राप्ति होती है. यात्रा के साथ यदि कुछ काम जुड़ जाए तो सोने पे सुहागा होता है. जिसकी अक्सर मुझे तलाश होती है.
अवसर था नागपुर जाने का. वहां लोक कलाओं ( खड़ी गम्मत) का मेला लगनेवाला था और मुझे बतौर अतिथि मुंबई से निमंत्रित किया गया था. महाराष्ट्र की लोक कलाओं पर मैं काम कर रहा हूं, अत: मेरे लिए यह किसी धाम की यात्रा से कम ना था. मेरे साथ कला संस्कृति के प्रेमी मित्र अरविंद लेखराज थे, जो बहुत ही अच्छा गाते हैं और उनकी गायकी के खजाने में सैकड़ो गीत शामिल हैं. ऐसे मित्रों के साथ यात्रा का आनंद कुछ अलग ही होता है.
हमारे देश में विविध लोककलाओं की समृध्द परंपरा है, जो प्राचीन काल से चली आ रही हैं. इसका जिक्र प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है. ये लोकगीत और लोककलाएं अपने – अपने प्रदेशों के संस्कृतियों की जीती जागती मिसाल हैं. इसीलिए हम अपने देश को अनेकता में एकता का अलख जगानेवाला देश कहते हैं.
महाराष्ट्र में तमाशा, और लावणी की परंपरा बड़ी ही समृध्द और लोकप्रिय है. इसके समांतर विदर्भ में खड़ी गम्मत नामक लोककला काफी लोकप्रिय है. इसकी विशेषता यह है कि आज भी विदर्भ में महिला नृत्यांगना के बजाय पुरूष ही स्त्री का शृगांर करके नृत्य करते हैं. इन्हें ‘ नाच्या पोर्या ’ कहा जाता है. इसी कड़ी में विदर्भ शाहीर परिषद – कन्हान में 51 वीं खड़ी गम्मत महोत्सव का आयोजन लोककला उपासक धरमदास भिवगुड़े और डॉ. हरिश्चंद्र बोरकर के नेतृत्व में किया गया था. नागपुर से डेढ़ घंटे की दूरी पर कन्हान स्थित है जो कस्बाई गांव है. आस - पास के परिसर से एक ही मैदान में कुल 51 पार्टियों को कला प्रदर्शन के लिए आमंत्रित किया गया था, जिसे लोकग्राम नाम से संबोधित किया गया था. बड़ा ही भव्य, बोधपरख और लोक जगराता का यह अनूठा प्रयोजन था. पांच हजार से अधिक श्रोतागण इसके साक्षी थे. विदर्भ में दंडार, डहाक़ा, ददरिया नृत्य, दंडीगाण, तुमड़ी, गंगासागर इत्यादि लोककलाओं का समावेश है.
मेरे लिए यह बड़ा ही सुखद और प्रेरणादायी अनुभव रहा. यहां की माटी, भाषा, संस्कृति, जीवन, खान – पान, पैदावार, परिधान, जागृत देव स्थान ,सामाजिक, ऐतिहासिक, भौगोलिक स्थिति, और प्रमुख पर्यटन स्थल देखने का भरपूर लाभ हमने उठाया. वैसे यात्राओं का उद्देश्य यही होना भी चाहिए. दो दिन के महोत्सव के बाद अब बारी थी परिसर घूमने की. नागपुर जाएं और बाबा आमटे के आनंदवन धाम ना जाएं तो यात्रा अधूरी रह जाती है. अत: आगे की जानकरी के लिए मुंबई के अंध मित्र पांडुरंग ठाकरे से फोन पर संपर्क किया. क्योंकि उनकी शिक्षा - दीक्षा आनंदवन में हुई है. सौभाग्य से उस समय वे अपने गांव चंद्र्पुर आये थे, जो नागपुर से तीन घंटे की दूरी पर है. हमारी योजना के बारे में सुनते ही ठाकरे जी रातो - रात बस से कन्हान आ गये. हमारे लिए यह सुखद आश्चर्य का विषय था. ठाकरे जी संगीतकार और क्लासिकल के अच्छे गायक भी हैं.
खैर दो से हम तीन हो गए इससे यात्रा का उत्साह और आनंद बढ़ गया. खुर – भाकरी ( ज्वार, बाजरे की मोटी रोटी ) मिसल – पाव, सिंघाड़ा, गंडेरी ( ईख के कटे टुकड़े) का लुत्फ हमने खूब उठाया और बस से वरोरा के लिए रवाना हो गए जहां आनंदवन मौजूद है. पूर्व सूचना के बगैर आनंदवन में ठहरना संभव नहीं हो पाता है पर ठाकरे जी की मौजूदगी से हमारी समस्या हल हो गई और दो दिनों तक उस पवित्र आश्रम में ठहरने का हमें सौभाग्य प्राप्त हुआ. नागपुर से यह दो घंटे की दूरी पर है.
आनंदवन में बाबा आमटे ने कुष्ठरोगियों के लिए शून्य से स्वर्ग का निर्माण किया है. इस बात को हम जानते हैं. एक बस्ती बसाई है जिसे ग्राम पंचायत का दर्जा प्राप्त है. यहां के कुष्ठरोगी स्वयंपूर्ण हैं वे किसी पर आश्रित नहीं हैं. स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, खेती, बागवानी, लघुउद्योग, रोजगार के साधन, हाट बाजार, कला, संस्कृति, विज्ञान, गौशाला, पुस्तकालय, डॅम इत्यादि सबकुछ है, जो कुष्ठरोगियों द्वारा संचालित है. कुष्ठरोगियों की सेवा और पुनर्वसन रूपी यज्ञ में कर्मयोध्दा आमटे जी ने अपने जीवन की आहुति दी है. इस परिसर में उनकी समाधी भी है, जहां जाकर हमने श्रध्दासुमन अर्पित किए. उनकी अर्धांगिनी साधना ताई आमटे ने भी बड़े ही समर्पण भाव से जीवन में उनका साथ निभाया. अपने इस महान कार्य के लिए आमटे परिवार की ख्याति न केवल देश, बल्कि विदेशों में भी है. कई राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों एवं सम्मानों से सम्मानित आमटे जी के परिवार की तीसरी पीढ़ी आज सेवा के प्रति समर्पित है. उपेक्षितों और दलितों के लिए संरक्षण विकास और सामाजिक न्याय का जो ज्वलंत संघर्षवादी इतिहास बाबा आमटे ने लिखा, वह अमिट है. इस प्रोजेक्ट के बाद छोटे - बड़े कुल 28 प्रोजेक्ट विविध उद्देश्यों के तहत उन्होंने शुरू किए. इनमें सोमनाथ, अशोकवन, नागेपल्ली, भामरागड़,आदि का समावेश है.
आनंदवन में हमने स्वस्थ कुष्ठरोगियों को उत्पादन का काम करते देखा. अलग – अलग प्रकार की चीजें यहां बनाई जाती हैं, और फिर इन्हें हाट बाजारों में भेजा जाता है. इनमें दुग्ध पदार्थ, चर्मकला, कपड़े, फर्नीचर, खेती, कंस्ट्रक्शन, लेखन सामग्री इत्यादि का समावेश है. संधिनिकेतन, उत्तरायण, युवा ग्राम, श्रध्दावन, मुक्ति सदन, साईबाबा दवाखाना, कुष्ठरोगी अस्पताल, इत्यादि उपक्रमों का समावेश है. मूक, बधीर, और अंध बच्चों के लिए अलग – अलग स्कूल हैं, जहां उन्हें मुफ्त में निवासी शिक्षा दी जाती है. जो लोग विकलांग हैं उन्हें तीन पहिया साइकिलें मिली है. जो रोगी पूर्णत: स्वस्थ हो चुके हैं और सामाजिक कारणवश अपने घरों को लौटने में असमर्थ हैं, ऐसे लोगों के लिए अलग से बस्ती बनाई गई है. इनकी आपस में पसंद के अनुसार शादियां भी कराई जाती हैं, ताकि जीवन की संध्या को जीवन साथी के साथ वे गुजार सकें. कुष्ठरोगियों के अलावा अन्य विकलांगों के भी पुनर्वसन की यहां व्यवस्था है. विकलांग बच्चों का स्वरानंद ऑर्केस्ट्रा अपने आप में बड़ा ही सुरीला और अनुपम अनुभव है. प्रोफेशनल लोगों के टक्कर का यह स्वरानंद, स्वर्गानंद की अनुभूति देता है.
यहं के उपेक्षितों को जीवनोंपयोगी प्रशिक्षण मान्यवर शिक्षकों द्वारा दिया जाता है. कई तरह के मेडिकल कॅम्प प्रति वर्ष लगाये जाते हैं, जिनमें देश के जाने – माने डॉक्टर अपनी सेवाएं बतौर सेवा प्रदान करते हैं. इसका लाभ आस - पास के क्षेत्र, आन्ध्र प्रदेश और मध्यप्रदेश के लाखों लोग उठाते हैं.
आमटे जी तो अब इस दुनिया में नहीं रहे पर हमारा सौभग्य था कि ठाकरे जी के कारण साधनाताई आमटे के साथ हमें जलपान करने का मौका मिला. उनके पुत्र डॉ. विकास आमटे, बहू ड़ॉ. भारती से भी मिलने का सुअवसर प्राप्त हुआ. उनके बड़े बेटे डॉ. प्रकाशजी अपनी पत्नी डॉ. मंदाकिनी के साथ हेमलकासा नामक जगह पर आमटे द्वारा शुरू किया गया ‘ लोक बिरादरी ’ प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी को बखुबी संभाल रहे हैं, जो आदिवासियों के उत्थान के लिए समर्पित है, और आनंदवन से 130 कि.मी. की दूरी पर है. वहां जाने के लिए बड़े ही दुर्गम रास्ते से गुजरना पड़ता है.
आनंदवन में रहने और सात्विक भोजन की उत्तम व्यवस्था है. बशर्तें आप वहां पूर्व सूचना देकर जाएं. वर्धा स्टेशन से यह नजदीक है. वर्धा में महात्मा गांधीजी का सेवाग्राम आश्रम भी है. गांधीजी स्वयं कुष्ठरोरोगियों की सुश्रुषा किया करते थे. इस बात को हम जानते हैं. सेवाग्राम में जाने पर गांधीजी की स्मृतियां ताजी हो जाती हैं. इस आश्रम की शांति और स्वछता देखते ही बनती है. बापूजी जी की जीवनी पर आधारित प्रदर्शिनी छोटी – छोटी कुटियों में बखुबी सजाई गई है जिसे देखते हुए मन भर आता है. विनोबा भावे का तपोवन आश्रम भी यहीं पास में है. इसे देखना भी एक प्यारा अनुभव है. वर्धा में पंच टीला की पहाड़ियों पर बना अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय की शान कुछ और ही है.
चन्द्रपुर स्थित कोयले की खदान जिसे ब्लॅक डायमंड युनिट कहा जाता है, यहां से 50 कि.मी. की दूरी पर है. पूरा परिसर चारो ओर से जंगल और पहाड़ियों से घिरा है. कलकल करती नर्मदा नदी इस भूमि को पावन बनाती है. प्रसिध्द रामटेक मंदिर है, जहां की पहाड़ी पर बैठकर महाकवि कालीदासजी ने मेघदूतम नामक कालजयी महाकाव्य की रचना की. आदिवासियों और अपने पिछड़ेपन के लिए जाना जानेवाला यह क्षेत्र नक्सलवादियों के आंदोलन के लिए भी जाना जाता है.
कुल मिलाकर हमारी यह यात्रा बड़ी ही यादगार और महत्वपूर्ण रही. दिनभर घूमना, लोकल फल - फ्रुट खाना, ताजी हवा, और रात में गीत,संगीत, और कविताओं की महफिल सजाना हमारा नित्यक्रम था.
रमेश यादव,
मुंबई – फोन – 9820759088
रचना मौलिक एवं अप्रकाशित है
Comment
प्रणाम महामना बाबा आमटे को और उनके परिवार को भी जो इस युग में इतने महत्वपूर्ण कार्य को संभाले हुए हैं पढ़कर ऐसा लगा कि तुरंत उठ कर इस यज्ञ में शामिल हो जाएँ
बहुत बहुत आभार आदरणीय इस जानकारी को श्रद्धेय रूप में प्रस्तुत करने के लिए
आप सभी मित्रों को धन्यवाद. सौरभ जी, कुंती जी , राहुल जी हौसलाअफजाई के लिए शुक्रिया
आपने जिस मनोयोग से इस यात्रा वृतांत को लिखा है वह हमारे लिए जानकारी का खज़ाना है. सेवाग्राम की मनोहारी यात्रा और इतनी विशद जानकारियों के लिए सादर धन्यवाद आदरणीय रमेशजी.
इस यात्रा का वर्णन पढ़कर बहुत सारी जानकारियाँ मिली. बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय.
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