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भ्रष्ट मंत्र है भ्रष्ट तंत्र है

इसे बदलना होगा

अब सत्ता के गलियारों में

हमें पहुंचना होगा

 

वीरों ने हुंकार भरी है

दुश्मन सभी दहल जाओ

भ्रष्टाचारी रिश्वतखोरों

तुम भी सुनो संभल जाओ

अपनी नीयत साफ़ करो अब

नहीं तो मरना होगा

 

वन्देमातरम के जयकारे

जनगणमन का गान करें

जहाँ कहीं भी हो आवश्यक

हम अपना बलिदान करें

देश के इन गद्दारों से अब

हमें निपटना होगा

 

बहुत हो चुकी अब मनमानी

बहुत हो गया भ्रष्टाचार

उठें बढ़ें हम कसें कमर को

देश को  है अब  यही पुकार

अपने अधिकारों को उनसे

हमें झपटना होगा

 

अब तक जिसका खून न उबला

खून नहीं वो पानी है

कदम मिलाकर जो चल देगा

सच्चा हिन्दुस्तानी है

बाकी लोगों को अपना

अस्तित्व परखना होगा

 

संजु शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित   

*यह गीत मैंने अन्ना आन्दोलन के समय लिखा था. आप सभी से मार्गदर्शन अपेक्षित है

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Comment by कल्पना रामानी on January 21, 2014 at 7:16pm

संजु जी आपका गीत जोश से भरा बहुत सुंदर है,इसके लिए हार्दिक बधाई आपको।  इसे मेरे विचार से गीत ही माना जाना चाहिए। कहीं कहीं मात्राएँ संतुलित नहीं हैं जिससे लय बाधित हो रही है।    

Comment by Shyam Narain Verma on January 21, 2014 at 4:52pm
बहुत खूबसूरत रचना के लिये आपको बधाई .....

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 21, 2014 at 4:20pm

आदरणीया संजू जी , सुन्दर जोशीले गीत रचना के लिये आपको बधाइयाँ ॥

कृपया ध्यान दे...

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