इस दुनिया के तौर तरीके
धीरे धीरे समझे हम
गुलदस्तों की ओट में खंजर
धीरे-धीरे समझे हम|
जोश बड़ा था होश नहीं था
हद से आगे गुजरे हम
हद से आगे जो होता है
धीरे-धीरे समझे हम|
जो भी मिल गए
अपने बन गए
रिश्ते खूब निभाये हम
रिश्तेदारों की हकीकत
धीरे-धीरे समझे हम|
बीत गयी हर बात पुरानी
एक कहानी बन गए हम
फंतासी हैं रिश्ते नाते
धीरे-धीरे समझे हम|
शहद समझकर हंसकर पी गए
जहर के कितने प्याले हम
किश्तों में फिर मौत का आना
धीरे-धीरे समझे हम|
दर्पण का दिल चटक गया
जब इसके भीतर झांके हम
हजार मुखोटे एक चेहरे पर
धीरे-धीरे समझे हम|
मेहनत करके हारा है जो
उसे नकारा समझे हम
मेहनतकश की पीर कहां है
धीरे-धीरे समझे हम|
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
Bahut bahut Abhaar Sushil Sharma jee
गहन भावों की बेहतरीन अभिव्यक्ति .... अति अति अति सुंदर रचना … हार्दिक बधाई
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