For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बह्र : २१२ २१२ २१२

जब उड़ी नोच डाली गई
ओढ़नी नोच डाली गई

एक भौंरे को हाँ कह दिया
पंखुड़ी नोच डाली गई

रीझ उठी नाचते मोर पे
मोरनी नोच डाली गई

खूब उड़ी आसमाँ में पतंग
जब कटी नोच डाली गई

देव मानव के चिर द्वंद्व में
उर्वशी नोच डाली गई
------------
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 984

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 1, 2014 at 7:38pm

आपका अनुमोदन मिला तो ग़ज़ल कहना सार्थक हो गया। बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सौरभ जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 1, 2014 at 2:36am

पहले तो मैं इस ग़ज़ल के रदीफ़ पर ही सामान्य किसी पाठक की तरह चौंका. लेकिन फिर एक-एक शेर से गुजरते हुए यह महसूस हुआ कि ये महज़ कहते-बतियाते हुए शेर नहीं हैं बल्कि झुंझलाहट और खौंझ को साझा करते हुए शेर हैं..

आपकी संवेदना और हार्दिक ऊहापोह को शब्दबद्ध हुआ देख रहा हूँ .

बधाई धर्मेन्द्र भाईजी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 31, 2014 at 8:35pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया कल्पना रामानी जी

Comment by कल्पना रामानी on January 31, 2014 at 10:22am

एक एक शे'र मन पर गहरा असर छोडता हुआ! इस बेमिसाल गज़ल के लिए आपको हार्दिक आदरणीय बधाई धर्मेन्द्र जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 30, 2014 at 10:15pm

बहुत बहुत शुक्रिया अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी। आप बिल्कुल सही हैं ‘नोच डाली गई’ जैसे वाक्यों को ग़ज़ल जैसी विधा में सामान्य तौर पर प्रयोग नहीं करना चाहिए। केवल ‘रेयरेस्ट आफ़ रेयर’ मामलों में ही जब जिस घटना से आपको प्रेरणा मिली हो वो सामान्य शब्दों / वाक्यों में व्यक्त न हो सके तभी ऐसे प्रयोग होने चाहिए। मुझे जिस घटना से प्रेरणा मिली वो ‘रेयरेस्ट आफ़ रेयर’ घटना थी  इसलिए मुझे मजबूरन ऐसा करना पड़ा। हाँ मैं ये नहीं स्वीकार करता कि ऐसी घटनाओं को ग़ज़ल विधा में व्यक्त ही नहीं करना चाहिए। व्यक्त करना चाहिए पर जहाँ तक हो सके ऐसे वाक्यों का प्रयोग करने से बचना चाहिए। मैं अगर इस वाक्य का प्रयोग किये बगैर यह ग़ज़ल कह पाता तो जरूर कहता। यह मेरी सीमा है कि मैं ऐसा नहीं कर सका।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 30, 2014 at 10:07pm

बहुत बहुत धन्यवाद  vandana जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 30, 2014 at 10:07pm

बहुत बहुत शुक्रिया laxman dhami जी। इस ग़ज़ल की प्रेरणा पश्चिम बंगाल वाली घटना ही है।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 30, 2014 at 10:06pm

बहुत बहुत शुक्रिया अजय कुमार सिंह जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 30, 2014 at 10:05pm

बहुत बहुत शुक्रिया gumnaam pithoragarhi साहब

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 30, 2014 at 10:04pm

तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ MAHIMA SHREE जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
11 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Jul 6
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Jul 6

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Jul 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Jul 3

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service