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बह्र : २१२ २१२ २१२

जब उड़ी नोच डाली गई
ओढ़नी नोच डाली गई

एक भौंरे को हाँ कह दिया
पंखुड़ी नोच डाली गई

रीझ उठी नाचते मोर पे
मोरनी नोच डाली गई

खूब उड़ी आसमाँ में पतंग
जब कटी नोच डाली गई

देव मानव के चिर द्वंद्व में
उर्वशी नोच डाली गई
------------
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 1, 2014 at 7:38pm

आपका अनुमोदन मिला तो ग़ज़ल कहना सार्थक हो गया। बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सौरभ जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 1, 2014 at 2:36am

पहले तो मैं इस ग़ज़ल के रदीफ़ पर ही सामान्य किसी पाठक की तरह चौंका. लेकिन फिर एक-एक शेर से गुजरते हुए यह महसूस हुआ कि ये महज़ कहते-बतियाते हुए शेर नहीं हैं बल्कि झुंझलाहट और खौंझ को साझा करते हुए शेर हैं..

आपकी संवेदना और हार्दिक ऊहापोह को शब्दबद्ध हुआ देख रहा हूँ .

बधाई धर्मेन्द्र भाईजी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 31, 2014 at 8:35pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया कल्पना रामानी जी

Comment by कल्पना रामानी on January 31, 2014 at 10:22am

एक एक शे'र मन पर गहरा असर छोडता हुआ! इस बेमिसाल गज़ल के लिए आपको हार्दिक आदरणीय बधाई धर्मेन्द्र जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 30, 2014 at 10:15pm

बहुत बहुत शुक्रिया अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी। आप बिल्कुल सही हैं ‘नोच डाली गई’ जैसे वाक्यों को ग़ज़ल जैसी विधा में सामान्य तौर पर प्रयोग नहीं करना चाहिए। केवल ‘रेयरेस्ट आफ़ रेयर’ मामलों में ही जब जिस घटना से आपको प्रेरणा मिली हो वो सामान्य शब्दों / वाक्यों में व्यक्त न हो सके तभी ऐसे प्रयोग होने चाहिए। मुझे जिस घटना से प्रेरणा मिली वो ‘रेयरेस्ट आफ़ रेयर’ घटना थी  इसलिए मुझे मजबूरन ऐसा करना पड़ा। हाँ मैं ये नहीं स्वीकार करता कि ऐसी घटनाओं को ग़ज़ल विधा में व्यक्त ही नहीं करना चाहिए। व्यक्त करना चाहिए पर जहाँ तक हो सके ऐसे वाक्यों का प्रयोग करने से बचना चाहिए। मैं अगर इस वाक्य का प्रयोग किये बगैर यह ग़ज़ल कह पाता तो जरूर कहता। यह मेरी सीमा है कि मैं ऐसा नहीं कर सका।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 30, 2014 at 10:07pm

बहुत बहुत धन्यवाद  vandana जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 30, 2014 at 10:07pm

बहुत बहुत शुक्रिया laxman dhami जी। इस ग़ज़ल की प्रेरणा पश्चिम बंगाल वाली घटना ही है।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 30, 2014 at 10:06pm

बहुत बहुत शुक्रिया अजय कुमार सिंह जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 30, 2014 at 10:05pm

बहुत बहुत शुक्रिया gumnaam pithoragarhi साहब

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 30, 2014 at 10:04pm

तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ MAHIMA SHREE जी

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