राष्ट्रपति बनने के लिए अब एकमात्र शर्त है
रोबोट होना
चाबी से चलने वाले खिलौनों को
प्रधानमंत्री पद के लिए प्राथमिकता दी जाती है
प्राणवान और बुद्धिमान बंदूकें बनाई जा रही हैं
गोलियों पर कारखानों में ही लिख दिये जाते हैं मरने वालों के नाम
इंसान विलुप्त हो चुके हैं
धरती पर रह गई है
मानव और यंत्र के समागम से बनी एक प्रजाति
सभी विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में
शिक्षा के नाम पर एक ही बात सिखाई जाती है
कैसे अपने दिमाग में स्थित तंत्रिकाओं को कृत्रिम तंत्रिकाओं से बदला जाय
जो जितनी ज्यादा तंत्रिकाएँ बदल पाता है
वो उतनी ही अधिक सफलता अर्जित करता है
कम से कम ऊर्जा खर्च करके अधिक से अधिक काम करना
युग का एक मात्र लक्ष्य है
जिसके पास जितनी ज्यादा ऊर्जा है
वो उतना अधिक धनवान माना जाता है
जिसके पास जितनी ज्यादा सूचना है
उसे उतना बुद्धिमान कहा जाता है
दिमाग को पतले से पतला काटकर
समझी जा रही है उसकी संरचना
ताकि पागलों के दिमाग का तंत्रिका जाल
पूरी तरह कृत्रिम तंत्रिका जाल से बदलकर उन्हें नियंत्रण में रखा जा सके
इस युग को सबसे ज्यादा खतरा पागलों के दिमाग से है
ये यंत्र युग है।
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
वर्तमान की कार्यपालिका सम्बन्धी अधकचरी परिपाटियों और संवेदनहीन वैज्ञानिकता के विकास की विसंगतियों को बिम्ब बना कर ताना-बाना बुनती इस कविता के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय धर्मेन्द्रजी.
पागल वाली भावदशा के कारण यह कविता बहुत ऊँची हो जाती है.
बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ
इस आधुनिक यंत्र युग का बहुत महीन चिंतन करती है आपकी कविता , बहुत बहुत बधाई आदरणीय धर्मेन्द्र जी
आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , आधुनिक युग की सच्चाई को लाजवाब शब्द दिये हैं , आपने ॥ बधाइयाँ प्रेषित हैं ॥
यथार्थ को परिभाषित करता ...............सुन्दर व्यंग्य
दिमाग को पतले से पतला काटकर
समझी जा रही है उसकी संरचना
ताकि पागलों के दिमाग का तंत्रिका जाल
पूरी तरह कृत्रिम तंत्रिका जाल से बदलकर उन्हें नियंत्रण में रखा जा सके
इस युग को सबसे ज्यादा खतरा पागलों के दिमाग से है......भाई साहब बहुत रूष्ट दिख रहे हैं.....शांति!......शांति.
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