For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राष्ट्रपति बनने के लिए अब एकमात्र शर्त है

रोबोट होना

 

चाबी से चलने वाले खिलौनों को

प्रधानमंत्री पद के लिए प्राथमिकता दी जाती है

 

प्राणवान और बुद्धिमान बंदूकें बनाई जा रही हैं

गोलियों पर कारखानों में ही लिख दिये जाते हैं मरने वालों के नाम

 

इंसान विलुप्त हो चुके हैं

धरती पर रह गई है

मानव और यंत्र के समागम से बनी एक प्रजाति

 

सभी विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में

शिक्षा के नाम पर एक ही बात सिखाई जाती है

कैसे अपने दिमाग में स्थित तंत्रिकाओं को कृत्रिम तंत्रिकाओं से बदला जाय

 

जो जितनी ज्यादा तंत्रिकाएँ बदल पाता है

वो उतनी ही अधिक सफलता अर्जित करता है

 

कम से कम ऊर्जा खर्च करके अधिक से अधिक काम करना

युग का एक मात्र लक्ष्य है

जिसके पास जितनी ज्यादा ऊर्जा है

वो उतना अधिक धनवान माना जाता है

 

जिसके पास जितनी ज्यादा सूचना है

उसे उतना बुद्धिमान कहा जाता है

 

दिमाग को पतले से पतला काटकर

समझी जा रही है उसकी संरचना

ताकि पागलों के दिमाग का तंत्रिका जाल

पूरी तरह कृत्रिम तंत्रिका जाल से बदलकर उन्हें नियंत्रण में रखा जा सके

 

इस युग को सबसे ज्यादा खतरा पागलों के दिमाग से है

 

ये यंत्र युग है।

-------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 488

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 6, 2014 at 3:20am

वर्तमान की कार्यपालिका सम्बन्धी अधकचरी परिपाटियों और संवेदनहीन वैज्ञानिकता के विकास की विसंगतियों को बिम्ब बना कर ताना-बाना बुनती इस कविता के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय धर्मेन्द्रजी.
पागल वाली भावदशा के कारण यह कविता बहुत ऊँची हो जाती है.
बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 4, 2014 at 11:39pm

इस आधुनिक यंत्र युग का बहुत महीन चिंतन करती है आपकी कविता , बहुत बहुत बधाई आदरणीय धर्मेन्द्र जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 4, 2014 at 6:31pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , आधुनिक युग की सच्चाई को लाजवाब शब्द दिये हैं , आपने ॥ बधाइयाँ प्रेषित हैं ॥

Comment by अनिल कुमार 'अलीन' on February 4, 2014 at 11:47am

यथार्थ को परिभाषित करता ...............सुन्दर व्यंग्य

Comment by coontee mukerji on February 4, 2014 at 3:16am

दिमाग को पतले से पतला काटकर

समझी जा रही है उसकी संरचना

ताकि पागलों के दिमाग का तंत्रिका जाल

पूरी तरह कृत्रिम तंत्रिका जाल से बदलकर उन्हें नियंत्रण में रखा जा सके

 

इस युग को सबसे ज्यादा खतरा पागलों के दिमाग से है......भाई साहब बहुत रूष्ट  दिख रहे हैं.....शांति!......शांति.

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service