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गजल - बदनाम (अखंड गहमरी)

2122  2122   2122   2122

 

इस जमाने में हमे तुमकेा बुलाना भी नहीं हैं

तड़पते ही रहे मगर जख्‍म दिखाना भी नहीं है

चाँद छुप छुप जा रहा क्‍यों बादलो के संग देखो

राज की ये बात बेवफा को बताना भी नहीं है

दर्द ही हमको मिला जो दिल लगाया था किसी से

जख्‍म जो दिल पर लगे  उन्‍हे दिखाना भी नहीं है

आई फिर ना वो बहारे जो चली इस बार गई पर

दर्द फूलो का बहारो को बताना भी नहीं है

नाम भी बदनाम उसका प्‍यार में ना कर सके पर

मर गये तो चेहरा मेरा  दिखाना भी नहीं है

 

 

मौलिक एवं अप्रकाशित

अखंड गहमरी गहमर गाजीपुर

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Comment

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Comment by Meena Pathak on February 1, 2014 at 12:13pm

बहुत सुन्दर गज़ल ..बधाई आदरणीय 

कृपया ध्यान दे...

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