मन के सुख-दुख, पीर भी, कैसे पायें भाव
टिप-टिप अक्षर आज के, टेक्स्ट हुए बर्ताव
चिट्ठी से तब भाव मन, होता था अभिव्यक्त
दिल के आँसू वाक्य थे, शब्द-शब्द थे रक्त
वह भी अद्भुत दौर था, यह भी अद्भुत दौर
’अब’ कार्डों से भाव सब, ’तब’ अमराई बौर
हृदय धड़कता आज भी, टेरे भाव महीन
पर संप्रेषण हो गया, ’यू नो.. आई मीन..’
चला गया जो दौर वो, रह-रह करता हॉण्ट ..
कागज मोनीटर हुए, अक्षर सारे फ़ॉण्ट ..
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-सौरभ
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(मौलिक व अप्रकशित)
Comment
इस प्रस्तुति को मान देे के लिए सुधीजनों को हार्दिक धन्यवाद
सादर
हृदय धड़कता आज भी, टेरे भाव महीन
पर संप्रेषण हो गया, ’यू नो.. आई मीन..’
अरे गजब सर......ये हिन्दी - अंग्रेजी का दोहे में प्रयोग....... कमाल का हुआ........ नाऊ ये दिल मांगे मोर :)
वाह क्या कहने आदरणीय सौरभ जी ,बहुत ही सुन्दर दोहे और वो भी नए स्टाइल में। …………आज कुछ तूफानी करते है????। । हार्दिक बधाई आपको
जी आदरणीय मैं यही कहना चाह रहा था!
आपकी बातों से पूर्णतः सहमत हूँ भाई बृजेशजी. आपने मेरे इशारे को बखूबी पकड़ा भी है.
वैसे देशज भाषा तो नहीं देशज शब्द कहना था.
भाईजी, देशज शब्दों में कोई कमी या बुराई नहीं है. विचित्र तो तब लगता है जब लोग दोहा लिखने के क्रम में क्रियापद को अनावश्यक रूप से आंचलिक करने लगते हैं. या संस्कृत-प्राकृत-अवहट्ट के शब्दों के व्यामोह में पड़ उनकी प्रासंगिकता को तूल देने लगते हैं. मैं समझता हूँ, आपका भी यही कहना है.
शुभ-शुभ
बहुत बहुत धन्यवाद, भाई जीतेन्द्रजी.
आपकी आत्मीयता के प्रति नत हूँ आदरणीय लक्ष्मणधामीजी..
आदरणीया वन्दनाजी, आपने अभिनव आयाम की अनुभूति की.
हार्दिक धन्यवाद इन दोहों की सार्थकता को रेखांकित करने के लिए ..
सादर धन्यवाद आदरणीय गिरिराजभाईजी.. .
उत्साहवर्द्धन केलिए सादर धन्यवाद आदरणीय लड़ीवालाजी..
सादर
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