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श्रवण कुमार ( लघु कथा )

श्रवण कुमार

“आप बड़ी खुशकिस्मत हो भाभी जो आपको इतना हीरे जैसा बेटा दिया भगवान ने । आपकी हर बात मानता है आपका कितना सम्मान करता है, कोई बुरी लत नहीं , कोई गलत रास्ता नहीं, वरना आजकल की औलादें तो बस पूछो ही मत ।“ एक ठंडी सी आह भर कर कामिनी देवी ने अपनी भाभी से कहा । “ हाँ कामिनी तू सच कह रही है, आज कल कहाँ बच्चे बूढ़े माँ बाप की चिंता करते है सच मै बड़ी भाग्यशाली हूँ जो हीरे जैसा बेटा है मेरा , एकदम श्रवण कुमार। “ शीला जी ने अपनी ननद की बात का समर्थन किया ।

आज शीला जी का शव आँगन के बीचो बीच रखा था सब मेहमान एकत्र हो गए थे पर बेटा अभी तक न आया था । लोग फोन पर फोन किए जा रहे थे वो उठता कैसे ? उठाने वाले का ही पता  नही था । वो अपनी रंगीनियों मे मस्त था । 

संशोधित 

 

अप्रकाशित एवं मौलिक 

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Comment by annapurna bajpai on February 1, 2014 at 6:58pm

आ0 अखिलेश जी , आ0 मीना दी आपका आभार । आ0 अखिलेश जी आपकी बात का उत्तर आ0 मीना दी ने दे दिया है , ये सही है की कई बार बच्चों की गलत आदतों का पता माता पिता को बाद मे चलता है ये भी संस्कार ही है कि बच्चे खुल कर सामने नहीं आते । 

Comment by Meena Pathak on February 1, 2014 at 12:19pm

कोई भी माता पिता अपने बच्चों को गलत संस्कार नही देते ..बहुत कुछ बच्चे बाहर से पा जाते हैं और घर वालों को बाद मे पता चलता है ..सुन्दर लघुकथा हेतु बधाई आ० अन्नपूर्णा जी ..

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on February 1, 2014 at 11:51am

कलियुगी श्रवणकुमार.... दोष पालन पोषण संस्कार और शराब बेचती सरकार की है॥

लघु कथा की बधाई ॥

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