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गीत -- कुछ पात ही अब शेष रहे !!

आँगन की नीम कहे 

कुछ पात ही अब शेष रहे 

 

प्रिय बसंत तुम आना 

नव मधुमास ले आना 

निज कर तुम सजाना 

प्रीतम की राह तके 

आँगन की ..................

 

पत्तों पर से  ओस हटी 

मण्डल मे छायी धुंध हटी

अंतस मे कोंपल सजी 

नवजीवन ही आस रहे 

आँगन की नीम ...................

शरद शिशिर सब  है गए

सज धज ऋतुराज है आए

आहट पा नीम लहराये

चिर बसंत ही  शेष रहे

आँगन की ...................   

 

 

संशोधित

अप्रकाशित एवं मौलिक 

  

 

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Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on February 16, 2014 at 11:58pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी.… अच्छे भाव वसंत के आगमन पर। ।जैसा नीरज भाई ने लिखा है हुत का यहाँ आशय समझाएं
सुन्दर।
भ्रमर ५
प्रतापगढ़  उ.प्रदेश

Comment by ram shiromani pathak on February 10, 2014 at 2:47pm

सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया हार्दिक बधाई आपको//////////   सादर

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 8, 2014 at 12:11pm

आदरणीय अन्नपूर्ना जी ..भाव प्रवण इस रचना के लिए तहे दिल बधाई स्वीकार करें ..सादर बधाई के साथ 

Comment by बृजेश नीरज on February 8, 2014 at 11:16am

आदरणीया अन्नपूर्णा जी, सुन्दर गीत है! आपका प्रयास सही दिशा में है! आपको हार्दिक बधाई!

कहन और शब्द-संयोजन पर और काम करने की आवश्यकता है!

'हुत' शब्द का दो जगह प्रयोग किया गया है, लेकिन दोनों ही जगह उसका औचित्य मुझे समझ नहीं आया. इस बिंदु पर आपके मार्गदर्शन की आवश्यकता है.

यह नवगीत क्यों नहीं है, अपनी टिप्पणी में आपने यह स्पष्ट नहीं किया है.

सादर!

Comment by annapurna bajpai on February 7, 2014 at 7:48pm

आ0 कुंती दीदी यह केवल गीत है , नवगीत नहीं है । 

Comment by रमेश कुमार चौहान on February 7, 2014 at 7:34pm

इस भावपूर्ण रचना के लिये बधाई

Comment by coontee mukerji on February 6, 2014 at 11:30pm

अन्नपूर्णा जी क्या आपने नवगीत लिखा है......मुझे शब्दों की कमी लग रही है.....इसीलिये पूछ रही हूँ....मैं गलत भी हो सकती हूँ.सादर

Comment by Meena Pathak on February 6, 2014 at 4:39pm

शिल्प के बारे मे गुनिजन बताएँगे ... मुझे पढ़ कर बहुत अच्छी लगी रचना ... बहुत बहुत बधाई आ० अन्नपूर्णा जी 

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