आँगन की नीम कहे
कुछ पात ही अब शेष रहे
प्रिय बसंत तुम आना
नव मधुमास ले आना
निज कर तुम सजाना
प्रीतम की राह तके
आँगन की ..................
पत्तों पर से ओस हटी
मण्डल मे छायी धुंध हटी
अंतस मे कोंपल सजी
नवजीवन ही आस रहे
आँगन की नीम ...................
शरद शिशिर सब है गए
सज धज ऋतुराज है आए
आहट पा नीम लहराये
चिर बसंत ही शेष रहे
आँगन की ...................
संशोधित
अप्रकाशित एवं मौलिक
Comment
आदरणीया अन्नपूर्णा जी.… अच्छे भाव वसंत के आगमन पर। ।जैसा नीरज भाई ने लिखा है हुत का यहाँ आशय समझाएं
सुन्दर।
भ्रमर ५
प्रतापगढ़ उ.प्रदेश
सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया हार्दिक बधाई आपको////////// सादर
आदरणीय अन्नपूर्ना जी ..भाव प्रवण इस रचना के लिए तहे दिल बधाई स्वीकार करें ..सादर बधाई के साथ
आदरणीया अन्नपूर्णा जी, सुन्दर गीत है! आपका प्रयास सही दिशा में है! आपको हार्दिक बधाई!
कहन और शब्द-संयोजन पर और काम करने की आवश्यकता है!
'हुत' शब्द का दो जगह प्रयोग किया गया है, लेकिन दोनों ही जगह उसका औचित्य मुझे समझ नहीं आया. इस बिंदु पर आपके मार्गदर्शन की आवश्यकता है.
यह नवगीत क्यों नहीं है, अपनी टिप्पणी में आपने यह स्पष्ट नहीं किया है.
सादर!
आ0 कुंती दीदी यह केवल गीत है , नवगीत नहीं है ।
इस भावपूर्ण रचना के लिये बधाई
अन्नपूर्णा जी क्या आपने नवगीत लिखा है......मुझे शब्दों की कमी लग रही है.....इसीलिये पूछ रही हूँ....मैं गलत भी हो सकती हूँ.सादर
शिल्प के बारे मे गुनिजन बताएँगे ... मुझे पढ़ कर बहुत अच्छी लगी रचना ... बहुत बहुत बधाई आ० अन्नपूर्णा जी
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