दोहे
1) नारी है सुता ,दारा धारे रूप अनेक ।
बंधन बांधे नेह का धीरज धर्म विवेक ॥
2) ये नारी है सृजक नहि अबला कमजोर ।
रोम रोम ममता भरी सह पीड़ा घनघोर ॥
3) महल दुमहले बन रहे वसुधा हरी न शेष ।
जीव जन्तु भटके सभी ऐसे महल विशेष ॥
4) माया माया कर रहा बढ़े चौगुना मोह ।
पानी पत्थर पूजि के रहा मुक्ति को टोह॥
5) सन्मार्ग दो प्रभु दिखा, दो ऐसा वरदान ।
सब मिल शुचिता से रहे होवे जग कल्यान ॥
संशोधित
अप्रकाशित एवं मौलिक
Comment
सुन्दर प्रयास हुआ है
माया माया कर रहा बढ़े चौगुना मोह ।
पानी पत्थर पूजि के रहा मुक्ति को टोह॥........सुन्दर
मात्रिकता और विधान को ध्यान रख एक बार पुनः दोहों को देख कर दुरुस्त कर लें आदरणीया अन्नपूर्णा जी
सादर.
बढ़िया दोहे हैं!
//नारी है सुता दारा// मुझे इसका अर्थ स्पष्ट नहीं हुआ.
यदि विषम और सम चरण को अलग करने के लिए कोमा का प्रयोग करना उचित न लग रहा हो तो कथ्य के हिसाब से तो जरूर करना चाहिए. जैसे- //सन्मार्ग दो प्रभु दिखा, दो ऐसा वरदान//
बाकी, आदरणीय अरुण निगम जी के कहे पर ध्यान दें!
इस अभिव्यक्ति पर आपको हार्दिक बधाई!
आदरणीय आशुतोष जी आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीया अन्नपूर्णा जी ..वर्तमान के यथार्थ का सुंदर चित्रण करते इन शानदार दोहों के लिए तहे दिल बधाई स्वीकार करें ..सादर
आपका हार्दिक आभार आ0 लड़ीवाला जी , शशि पुरवार जी ।
आदरणीय अन्नपूर्णा जी भाव सुन्दर है अच्छा प्रयास है ,
प्रयास हेतु बधाई | श्री अरुण कुमार निगम जी की नेक सलाह गौर करने योग्य है | सादर
आदरणीय प्रभाकर जी मैंने मात्राओं को पुनः गिन कर दोहे ठीक कर लिये है । आपके अनुमोदन की अभिलाषा है । सादर
आदरणीय अरुण निगम जी विधिवत समझाने के लिए आपका हार्दिक आभार , और तीसरे दोहे मे वसुधा हरी न शेष है , रही नहीं । आपका पुनः पुनः आभार आपने समय दिया । सादर
आ० अन्नपूर्णा जी, लगता है कि मात्रायों की गिनती अभी तक अच्छी तरह नहीं जानी आपने।
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