एक मासूम...
तल्लीनता से जोर-जोर पढ़ रहा था
क-कमल,ख-खरगोश,ग-गणेश।
शिक्षक ने टोका
ग-गणेश! किसने बताया?
बाबा ने...
माँ और पिता को सब कुछ माना
तभी तो सबसे बड़े देव हुए।
नहीं,गणेश नहीं कहते
संप्रदायिकता फैलेगी
जिसे तुम समझो झगड़ा. .विवाद
ग-गधा कहो बेटे।
आस्था भोली थी
बाबा के गणेश,मसीहा और अल्लाह से रेंग
'गधे' में शांति खोजने लगी...।
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ सर:
आपकी बधाई के लिए हार्दिक आभार आदरणीय,पर इस व्यवस्था के लिए क्या कहा जाये!
यह जानकर प्रसन्नता हुई कि रचना का सम्बन्ध सत्य-घटना से है।
आपका बहुत शुक्रिया मेरा आत्मबल बढ़ाने के लिए आदरणीय।
सादर
आदरणीय विजय सर:
रचना की सफलता को आपने इंगित किया...मेरा बहुत उत्साहवर्धन हुआ।
आपका हार्दिक आभार आदरणीय।
सादर
आदरणीय शरदेन्दु सर:
अपने साधारण सी रचना को इतने आयामों से जोड़ा...रचनाकी सार्थकता को बढ़ाया,आभारी हूँ आदरणीय।
स्नेह बनाये रखें।
सादर
आदरणीय जितेन्द्र जी आपको रचना बढ़िया लगी...मुझे सम्बल मिला।
सादर अभार
वाह! बहुत सुन्दर सार्थक रचना प्रिय वंदना जी
आस्था भोली थी
बाबा के गणेश,मसीहा और अल्लाह से रेंग
'गधे' में शांति खोजने लगी...।
बहुत सुन्दर व्यंग के माद्यम से आपने साम्प्रदायिक सोच पर गहरी बात कही है..
हार्दिक शुभकामनाएं
आदरणीय बृजेश सर, आपकी प्रतिक्रिया पाकर मन प्रसन्न हुआ। आपका बहुत आभार।
आदरणीया मीना दी आप ने रचना पढ़ी,मुझेअच्छा लगा।
सादर धन्यवाद।
शुक्रिया आदरणीय राम शिरोमणि पाठक जी।
आदरणीय गिरिराज जी:
आपने रचना का मर्म समझा,इसके लिए आपका बहुत आभार।
सादर
कविता आज के ढोंगियों पर सटीक चोट करती है. इसके लिए आप बधाई पात्र हैं.
वैसे आप जानें, कि ये एक सत्य घटना है. अस्सी के दशक के आखिरी सालों में जब देश को ऐसे छद्म विचारकों से खूब-खूब पाला पड़ने लगा था और तब तक वे खूब मुखर हो चुके थे, मध्यप्रदेश सरकार ने ऐसी ही एक सफल पहल की थी. और, अबोध शिशु ग को गणेश की जगह गधा से समझने लगे.
:-)))
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