!!! बनो दिनमान से प्रियतम !!!
बनो दिनमान से प्रियतम,
नित्य ही नम रहे शबनम।।
उजाला हो गया जग में,
रंग से दंग हुर्इ सृष्टि।
लुभाता रूप यौवन तन,
गंध के संग हुर्इ वृष्टि।
समां भी हो गया सुन्दर, जलज-अलि का हुआ संगम।। 1
पतंगी डोर सी किरनें,
बढ़ी जाती दिशाओं में।
मधुर गाती रही चिडि़या,
नाचते मोर बागों में।
कल-कल ध्वनि करें नदिया, लहर पर नाव है संयम।। 2
किनारों पर बसी बस्ती,
सुबह औ शाम की मस्ती।
सितारों ने कहा जब से,
इशारों में मिलो रब से।
चांद भी झांकता छत पर, सुनाती चांदनी सरगम।। 3
सुखों का सार है सहना,
गहना क्रोध है दु:ख का।
उदासी छिप रही धन में,
ज्ञान को सोखती शंका।
मन क्रम बचन रहे सत से, राम का नाम लो हरदम।। 4
के0पी0सत्यम-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ0 सौरभ सर जी, शरदिन्दु सर जी व अन्नपूर्णा जी आप सभी का तहेदिल से बहुत-बहुत आभार। मेरा मानना है कि किसी भी रचनाओं पर उनके प्रत्येक पहलुओं पर सार्थक विचार किया जाए। मुझे बेहद प्रसन्नता हुर्इ कि आपने अपनी अमूल्य टिप्पणियां अंकित कर मेरा मार्गदर्शन किया है। सादर,
अभी थोड़ी देर पहले आपका एक समृद्ध नवगीत पढ़ कर कुछ अधिक ही निहाल हो रहा था मैं. आपने पूर्ववत संतुलन में ला दिया.
मज़ा यह कि आप इस रचना पर वाह वाही भी खूब पा गये हैं. अब इस पर मैं क्या कहूँ ? सभी पाठक हैं. सबको अपने अनुसार रचनाओं को समझने और तदनुरूप मुग्ध होने का अधिकार है.
देखिये न, दिनमान और शबनम में बिम्ब के हिसाब से ही नहीं, भौतिक रूप से भी छत्तीस का आँकड़ा हुआ करता है. फिर कोई प्रियतमा अपने वातावरण को नम बनाये रखने का आग्रह रखे, अपने प्रिय से दिनमान होने का अनुरोध कैसे कर सकती है ? दूसरे, रचना में प्रयुक्त शब्दों या अंतरों (बंदों) की तुकान्तता में भी तारतम्यता नहीं है, भाई.
बहरहाल, मेरी ओर से भी बधाई हो.
सादर
सुंदर रचना ,बधाई आपको आ0 केवल भाई जी ।
आदरणीय जितेन्द्र जी आपका हार्दिक आभार। सादर,
आदरणीय कुन्ती मैम जी आपका हार्दिक आभार। सादर,
सुखों का सार है सहना,
गहना क्रोध है दु:ख का।
उदासी छिप रही धन में,
ज्ञान को सोखती शंका।
मन क्रम बचन रहे सत से, राम का नाम लो हरदम।।.....सफल जीवन का मार्गदर्शन करती पंक्तियाँ , बहुत बहुत बधाई आदरणीय केवल जी
सुखों का सार है सहना,
गहना क्रोध है दु:ख का।
उदासी छिप रही धन में,
ज्ञान को सोखती शंका।
मन क्रम बचन रहे सत से, राम का नाम लो हरदम।। 4.......इतनी सुंदर रचना हेतु आपको अनेक बधाइयाँ.भाई केवल जी.
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