हे शारदे मां.....! हे शारदे मां !
जगत की जननी
कल्याणकारी
संयम उदारी
अति धीर धारी
व्याकुल सुकोमल, बालक पुकारे।..... हे शारदे मां.....!
हंसा सवारी
मंशा तुम्हारी
तू ज्ञान दाती
लय ताल भाती
है हाथ पुस्तक, वीणा तु धारे।... हे शारदे मां.....!
संसार सारं
नयना विशालं
हृदयार्विन्दं
करूणा निधानं
अखण्ड सुविधा, सरगम उचारे।.... हे शारदे मां.....!
माता हमारी
बृहमा कुमारी
है मुक्तिदाती
यश कीर्ति गाती
उपकार मां कर, सब जन पुकारे।.... हे शारदे मां.....!
के0पी0 सत्यम मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ0 सौरभ सरजी, आपका तहेदिल से बहुत.बहुत आभार। आपने मेरे संशय को दूर कर दिया। वास्तव में मैं भी अपनी रचना से संतुष्ट नहीं था, इसलिए ही इसे जानबूझ कर अतिबिलम्ब से पोस्ट किया है। आपके मार्गदर्शन हेतु हार्दिक आभार। सादर
कुछ विन्दुओं पर आपसे स्पष्टता चाहता हूँ भाईजी-
उदारी ... यह क्या शब्द है और किन अर्थों में प्रयुक्त हुआ है ?
व्याकुल सुकोमल, बालक पुकारे ............ यह ’सुकोमल’ बालक कौन है ?
अखण्ड सुविधा, सरगम उचारे............ इसका अर्थ क्या हुआ ? संस्कृतनिष्ठ अंतरा के बाद अचानक देसज का यह प्रयोग ?
बृहमा को संभवतः आपभी ब्रह्मा लिखना चाहेंगे.
यश कीर्ति गाती......... इस पद से क्या आशय है ? किसकी यश कीर्ति ?
मेरी समझ से उपरोक्त विन्दु रचना को अस्पष्ट कर रहे हैं, भाई केवल प्रसादजी. इन्हें स्पष्ट कर साझा करें तो रचना कुछ और संप्रेषणीय हो सकेगी.
शुभ-शुभ
आ0 अखिलेश भार्इ जी आपका हार्दिक आभार। सादर,
आदरणीय केवल भाईजी,
बसंत पंचमी पर माँ शारदे की सुंदर वंदना पर हार्दिक बधाई ॥
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