ढांचा सुधरे देश का ,सुदृढ़ हो आकार
खुशियाँ बसती हैं जहां ,छोटा हो परिवार
छोटा हो परिवार ,प्रेम से आँगन महके
पुत्री हो या पुत्र ,नीड़ में खुशियाँ चहके
बूढों का सम्मान ,भरे जीवन का सांचा
हो जाए उत्थान , देश का सुधरे ढांचा
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(२)|
पहले दो टुकड़े हुए ,और हुए फिर चार
टूक-टूक रोटी बटे,बढ़े अगर परिवार
बढ़े अगर परिवार, लड़ाई गुत्थम गुत्थी
खिचे बीच दीवार, रोज की माथापच्ची
रिश्तों बीच खटास,आर्थिक धरती दहले
खुशियाँ लाओ पास,करो नसबंदी पहले
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(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
प्रिय राम शिरोमणि पाठक जी कुंडलियाँ आपको पसंद आई सार्थक लगी ,बहुत- बहुत शुक्रिया आपका.
बेहद सुन्दर कुण्डलिया आदरणीया हार्दिक बधाई आपको////////// सादर
प्रिय अरुन शर्मा कुंडलियों पर आपका स्नेहसिक्त अनुमोदन मिला हार्दिक आभार आपका.
आदरणीया माँ जी दोनों ही कुण्डलिया बेहद सुन्दर और संदेशप्रद रची है आपने आपको ढेरों दिली बधाइयाँ प्रेषित हैं स्वीकार करें.
सादर आभार आ० आशुतोष मिश्रा जी आपको कुण्डलियाँ पसंद आई
पुत्री हो या पुत्र ,नीड़ में खुशियाँ चहके
बूढों का सम्मान ,भरे जीवन का सांचा
आदरणीया राजेशजी .बेहद सुंदर कुंडलियाँ ..आपको हार्दिक बधाई के साथ
आदरणीया आपने बिलकुल सही कहा ..ये कमेन्ट मैंने मौत आती है मरते मरते पर की थी कमेन्ट गलती से आपकी रचना पर हो गया था .मैं इसे सतत दूर करने की कोशिस कर रहा था किन्तु नेट कनेक्टिविटी न होने के कारन ऐसा कर न सका था ..मैंने संसोधन कर लिया है ..सादर प्रणाम के साथ
आ० आशुतोष जी आपने ये टिपण्णी गलत जगह कर दी है ,ये कुंडलियाँ हैं आपने किसी और रचना की टिपण्णी यहाँ कर दी है ,कृपया दुबारा जांच करें
ब्रजेश जी, कुंडलियों पर आपकी सराहना मिली लिखना सार्थक हुआ हार्दिक आभार आपका.
आदरणीया, सुन्दर कुण्डलियाँ हैं! आपको हार्दिक बधाई!
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