२१२२ २१२२ २१२२ २१२
बारहा सजदा करेंगे खुश खुदाया हो न हो
इस अकीदत का कभी एजाज़ पाया हो न हो
जान रख दें उस ख़ुदा के सामने तेरे लिए
सर किसी के सामने हमने झुकाया हो न हो
सींचते उसकी जड़ों को आज भी हम प्यार से
वक़्त हमने छाँव में उसकी बिताया हो न हो
याद में उसकी हमेशा हम लिखेंगे हर ग़ज़ल
हम भुला सकते नहीं उसने भुलाया हो न हो
काश जलकर हम उजाला कर सकें उसके लिए
दीप उसने आज घर अपने जलाया हो न हो
लिख दिया है नाम अपना उस समंदर के निहाँ
गेसुओं ने मौज की उसको मिटाया हो न हो
चाँद की महफ़िल सजी है झिलमिलाती चाँदनी
बज्म में उसकी चलें हम को बुलाया हो न हो
वादिए शादाब में ढूँढे नदी अपने निशाँ
अब्र उसकी जिंदगी में ‘राज’ आया हो न हो
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बारहा =हमेशा, सजदा =पूजा, एजाज़=चमत्कार ,जादू
निहाँ =अन्दर, अकीदत =आस्था ,श्रद्धा, वादिए शादाब =हरी भरी वादी
अब्र =बादल
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
गज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना पाकर हर्षित हूँ तहे दिल से आभार आपका आदरणीय सौरभ जी.
याद में उसकी हमेशा हम लिखेंगे हर ग़ज़ल
हम भुला सकते नहीं उसने भुलाया हो न हो .. यह शेर वाकई खास है.
बधाई स्वीकार करें आदरणीया राजेश कुमारी.
सादर
प्रिय प्राची जी, ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना ये ग़ज़ल धन्य हुई ,तहे दिल से आभारी हूँ.सस्नेह.
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है आ० राजेश जी
हर एक शेर पर अलग-अलग ढेर सी बधाई लीजिये
याद में उसकी हमेशा हम लिखेंगे हर ग़ज़ल
हम भुला सकते नहीं उसने भुलाया हो न हो......................बहुत सुन्दर
शुभकामनाएं
आ० कल्पना रमानी जी आपको ग़ज़ल ,रदीफ़ पसंद आया तो मेरी ग़ज़ल मुकम्मल हुई तहे दिल से आभारी हूँ .
ब्रजेश जी, ग़ज़ल आपको पसंद आई मन प्रसन्न हो गया तहे दिल से आभार आपका.
आद्रणीया राजेश कुमारी जी, बहुत सुंदर गज़ल हुई है आपकी। हर शे'र लाजवाब। रदीफ़ विशेष पसंद आई।
वाह! बहुत सुन्दर ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!
लक्ष्मण धामी जी आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से आभारी हूँ .
आदरणीया राजेश जी , बहुत लाजवाब ग़ज़ल कही है l सभी शे र एक से बढ़्कर एक हैं l हार्दिक बधाइ स्वीकार करें ॥
जान रख दें उस ख़ुदा के सामने तेरे लिए
सर किसी के सामने हमने झुकाया हो न हो
शे'र के लिए पुनः बधाई .
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