तेरे फड़फड़ाते पंखों की छुअन से
ऐ परिंदे!
हिलोर आ जाती है
स्थिर,अमूर्त सैलाब में
और...
छलक जाता है
चर्म-चक्षुओं के किनारों से
अनायास ही कुछ नीर.
हवा दे जाते हैं कभी
ये पर तुम्हारे
आनन्द के उत्साह-रंजित
ओजमय अंगार को,
उतर आती है
मद्धम सी चमक अधरोष्ठ तक,
अमृत की तरह.
विखरते हैं जब
सम्वेदना के सुकोमल फूल से पराग,
तेरे आ बैठने से.
चेतना फूंकती है सुगंधी
जड़, जीर्ण और...अचेतन में.
बोल,भावों के विहंगम!
है कहाँ तेरा घरौंदा?
कण-कण में या हृदय में,
या फिर दूर...
यथार्थ के उस यथार्थ में,
जो कई बार अननुभूत रह जाता है.
-विन्दु
(मौलिक/अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय जितेन्द्र जी,
आपकी बधाई सहर्ष स्वीकार है और आपको भी मेरा हार्दिक धन्यवाद,रचना पर स्नेहात्मक प्रतिक्रिया देने के लिए।
सादर
आदरणीया शशि जी:
भावों की अभिव्यक्ति भावों के लिए:)
आपकी उपस्थिति देख मन खुश हुआ.
अभिव्यक्ति आपको सुंदर लगी...इसके लिए आपका बहुत आभार.
सादर
आपको कुछ पल तक रचना में खोयीं ,रचना सफल हुई प्रिय महिमा जी.
पंक्तियों को सराहने के लिए आपका सादर आभार.
आदरणीया प्राची दी...
आपकी निष्ठ प्रतिक्रिया सदैव मुझे उत्साहित करती है।
आप रचना के तह तक गयीं...उसकी अंतर्धारा को स्पर्श किया...मुझे बहुत अच्छा लगा.
आपका बहुत शुक्रियाआदरणीया,स्नेह बनाये रखें।
सादर
आदरणीय रमेश कुमार चौहान जी आपने रचना को भावपूर्ण कह सराहा.,इसके लिए आभारी हूँ।
सादर
परम आदरणीय विजय सर,
आपकी प्रतिक्रिया का शब्द-शब्द मेरा आन्तरिक उत्साहवर्धन करता है।आपने रचना को कई बार पढा,आशीर्वाद दिया...रचना और रचनाकार दोनों का सौभाग्य है।
आपका हार्दिक आभार आदरणीय।
सादर
आप की टिप्पणी मुझे सम्बल देती है आदरणीय भंडारी सर...इसे बनाये रखें।
सादर आभार आदरणीय।
आदरणीय राम शिरोमणि जी आपकी प्रशंसा से उत्साह बढ़ा।
हार्दिक धन्यवाद आपका।
सादर
Respected Kunti Ma'm,
आपकी मुखर प्रतिक्रिया के लिए बहुत शुक्रिया आदरणीया।
सादर
आपका हार्दिक आभार आदरणीया मीना दीदी.
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