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   मन बौराया

कंगना खनका

मन बौराया

ऐसा लगता फागुन आया ।

रूप चंपयी

पीत बसन

फैली खुशबू

ऐसा लगता

यंही कंही  है चन्दन वन ।

पागल मन

उद्वेलित करने

अरे कौन चुपके से आया ?

पनघट पर

छम छम कैसा यह !

कौन वहाँ रह – रह बल खाता ?

मृगनयनी वह परीलोक की

या है वह  –

सोलहवां सावन !

मन का संयम

टूटा जाये

देख देख यौवन गदराया ।

कंगना खनका

मन बौराया

ऐसा लगता फागुन आया ।

  ---- मौलिक एवं अप्रकाशित ---

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 23, 2014 at 7:27pm

आदरणीय ब्रह्मचारी जी  मन को छू लेने वाली रचना ..इसे गुनगुनाते हुए पढने में बहुत आनद आया ..प्रबह्मयी इस रचना के लिए तहे दिल बधाई सादर

Comment by annapurna bajpai on February 23, 2014 at 12:18am

सुंदर रचना , बधाई आपको आदरणीय ब्रह्मचारी जी । 

Comment by ram shiromani pathak on February 22, 2014 at 4:28pm

अहा आनंद आ गया बहुत ही सुन्दर रचना,सुन्दर प्रवाह आदरणीय ,हार्दिक बधाई आपको  //सादर

Comment by Shyam Narain Verma on February 22, 2014 at 3:56pm
बहुत बढ़िया रचना आदरणीय .......
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 22, 2014 at 12:16pm

कंगना खनका

मन बौराया

ऐसा लगता फागुन आया ।----वाह ! बहुत खूब | सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई श्री ब्रह्मचारी जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 22, 2014 at 9:01am

फाल्गुन के स्वागत में बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की आपने आदरणीय ब्रह्मचारी जी हार्दिक बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

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