जब सब कुछ था
मेरे पास
जो
जीने के लिए काफी था
तुम्हारा प्यार,
तुम्हारा साथ,
तुम्हारा समय
तुम्हारा विश्वास
हमारा साहस
यही सब
मेरी बहुमूल्य पूंजी थी
वो
उड़ान भरते
सुनहरे सपने
जो
हम दोनों ने कभी देखे थे
दुनिया
अपने कदमों में थी
तो किसकी लगी नज़र ?
जो छूटा ...
तुम्हारा प्यार
तुम्हारा साथ
क्यों रुकीं
वो सांसें
वो जिन्दगी
टूटीं उम्मीदें
टूटे सपने
और
साथ ही
टूट गया
मेरा भरोसा
मेरा साहस
शायद
नहीं नहीं
नहीं कभी नहीं
खोयेगा
मेरा धैर्य
मेरा विश्वास
नहीं टूटेगा
मेरा साहस
क्योंकि
तुम
हाँ तुम हो
हमेशा मेरे साथ
मेरी हिम्मत बन
दोगे मुझे प्रेरणा
आगे बढ़ने की
..............................
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीया, आपकी इस प्रस्तुति के माध्यम से बृजेश भाई ने बहुत पते की बात की है.
प्रयास के लिए हार्दिक बधाई.
सादर
आदरणीय ब्रिजेश जी कृपया थोड़ा अगर विस्तार से इस बारे में समझा सकें तो महती कृपा होगी चाहे msg में ही बता दीजिये इसी में से उदाहरण देकर plzz
आदरणीय गिरिराज जी हार्दिक आभार
आदरणीय अन्नपूर्ण जी शुक्रिया
आदरणीय लक्ष्मण जी हार्दिक आभार
बहुत सुन्दर रचना! आपको हार्दिक बधाई!
पंक्तियों को तोड़ते समय प्रवाह को आधार बनाया जाना चाहिए.
आदरणीया सरिता जी . यही विश्वास , आत्मविश्वास तक पहुँचयेगा एक दिन , सुन्दर रचना के लिये आपको बधाइयाँ ॥
सुंदर रचना , आ0 सरिता भाटिया जी ।
सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई
हार्दिक आभार कल्पना जी
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