For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक मासूम कली
भंवरे के स्पर्श से
खिल उठी
मुस्काई
हर्षाई
लिया पुष्प सा रूप
एक दिन
भंवरा उसका खो गया
पुष्प का हाल बुरा हो गया
उदास बेचैन पुष्प को चाहिए था
थोड़ा प्यार
थोड़ा दुलार
थोड़ी हंसी
थोड़ी हमदर्दी
जो ना मिल पाई


फिर एक दिन
आया एक भंवरा
जो उसके आसपास मंडराता
उसे तराने सुनाता
उसे खिलखिलाना सिखाता
पुष्प हुआ पुनर्जीवित
उसके प्यार से
दुलार से
पर
चिंतित हर क्षण
ना खो दे
अपनी खुद्दारी
आत्मसम्मान
अपना अस्तित्व
क्योंकि
यह दुनिया है स्वार्थी
यहाँ कुछ भी पाने के लिए
कुछ खोना पड़ता है
उस ने सोचा
अगर कुछ खोना है तो
खोना होगा अपना वजूद
या तो वो होगा
किसी मंदिर
किसी शहीद की
समाधि पर अर्पित
फिर क्यों करे
वो
अपना आत्मसम्मान
अपनी खुद्दारी समर्पित

अगर मिले कोई ऐसा पुष्प
उसे
अपने प्यार से
दुलार से

सींचना हर दम
नहीं करना उसे मजबूर
खोने के लिए उसका वजूद

.....................................

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 791

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Meena Pathak on March 3, 2014 at 9:31am
Bahut sundar, dil ko chhoo Gayee aap kee Rachna .. Badhai
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 2, 2014 at 10:38am

बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीया सरिता जी

Comment by बृजेश नीरज on March 2, 2014 at 8:09am

अच्छी रचना! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by kalpna mishra bajpai on March 1, 2014 at 10:06pm

आ0 सरिता जी भाव पूर्ण रचना के लिए बहुत बधाई /सादर

Comment by कल्पना रामानी on March 1, 2014 at 9:02pm

बहुत सुंदर कविता  सरिता जी, हार्दिक बधाई आपको /सादर

Comment by annapurna bajpai on March 1, 2014 at 7:15pm

बहुत बहुत सुंदर , हृदय स्पर्शी रचना । आ0 सरिता भाटिया जी बधाई आपको । 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service