बह्र : २१२ २१२ २१२ २१२
ये ख़ुराफ़ात करने से क्या फ़ायदा
जाति की बात करने से क्या फ़ायदा
हाय से बाय तक चंद पल ही लगें
यूँ मुलाकात करने से क्या फ़ायदा
हार कर जीत ले जो सभी का हृदय
उसकी शहमात करने से क्या फ़ायदा
आँसुओं का लिखा कौन समझा यहाँ?
आँख दावात करने से क्या फ़ायदा
ये जमीं सह सके जो बस उतना बरस
और बरसात करने से क्या फ़ायदा
कुछ नया कह सको गर तो ‘सज्जन’ सुने
फिर वही बात करने से क्या फ़ायदा
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया Shyam Narain Verma जी
बहुत बहुत धन्यवाद शिज्जु शकूर जी
बहुत बहुत शुक्रिया sanju shabdita जी
वाह! बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!
शानदार भाव व्यक्त किए है आप ने . बधाई
बहुत सुन्दर वाह। ........
आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
बहुत उम्दा ... बहुत बहुत बधाई.... |
आदरणीय धर्मेंन्द्र जी लाजवाब ग़ज़ल हुई है। आपके खयालात मानो अल्फाज़ की शक्ल लेकर ग़ज़लगोई को नये मायने दे रहे हैं। बहुत बहुत बधाई आपको।
कुछ नया कह सको गर तो ‘सज्जन’ सुने
फिर वही बात करने से क्या फ़ायदा ............... बहुत खूब सज्जन जी, सच है नया कहना बेहद जरूरी ..सुन्दर ग़ज़ल हेतु हार्दिक बधाई //
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