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पानी में आग--ओमप्रकाश क्षत्रिय "प्रकाश"

------पानी में आग -----------

पानी में आग वे लगाने लगे है .

भूखे थे पर वे चहचहाने लगे है .

फूलों की मानिंद प्यार करते थे

काँटों से दोस्ती वे निभाने लगे है .

जो स्वयं पास न कर सके परीक्षा

ऐसे शिक्षक आज पढ़ाने लगे है .

पुलिस ने चोरो से की दोस्ती

गश्त में वे अपनी सुसताने लगे .

देशसेवा का जज्बा लिए थे जो

वे अपने देश को ही खाने लगे है .

------------------------------------

ओमप्रकाश क्षत्रिय "प्रकाश "

-- मौलिक व अप्रकाशित "

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 19, 2014 at 1:15pm

२१२ २१२ २१२ २१२ 
आग पानी में अब वो लगाने लगे.

इस बहर पर साधने का प्रयास करें, निश्चित ही यह रचना ग़ज़ल हो सकती है. हा यह ध्यान रहे की मिसरा उला और सानी का संबंध बन सके, सादर |

Comment by Omprakash Kshatriya on March 19, 2014 at 7:46am
इस कविता को ग़ज़ल के रूप में रूपांतरित कर सकते है ?

कृपया ध्यान दे...

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