फागुन चला गया, अरे फागुन चला गया,
वह खुशमिजाज मौसम सगुन दे चला गया।
बागों में आम बौर बढ़े, फगुआ हवा में,
सर्दी के सितम से भी तो राहत दी पछुआ ने।
हर एक दिल को खुशनुमा करके चला गया,
फागुन चला गया, अरे फागुन ..................
सूरज की चमक को भी तो फागुन ने टटोला,
हर एक दिल को मौसमी अंदाज से तोला।
बूढ़ों को धूप, बच्चों को मुस्कान दे गया।
हर व्यक्ति को राहत भरा उनमान दे गया।
फागुन चला गया, अरे फागुन ..................
हम बात कहें, अन्नदाता के हिसाब की,
फागुन ने तो भर दी है झोली हर किसान की।
खेतों में गेहूं-सरसों हैं गलबहियां कर रहे,
अलसी, चना औ जौ भी हैं अठखलियां कर रहे।
अरहर है झूमते हुए, कहती बुरा हुआ।
फागुन चला गया, अरे फागुन ..................
फागुन की विदाई को न गेहूं भी सह सका,
पेड़ों के पत्ते टूटे, लगे आंसू बह रहा।
अब तक हरे भरे जो, गम में दीखते पीले,
पकती हुई फलियां हैं लगती गम में जा डूबे।
फसलें औ पादप मानो कहते, अरे क्या हुआ?
फागुन चला गया, अरे फागुन ..................
जब कांपते थे, फागुन की दस्तक हुई तभी,
जब हांफते थे घर से निकलने को ही सभी।
बस माह भर में दु:ख सारे दूर कर दिए
मौसम की थी जो दिक्कतें अमचूर कर दिए।
क्षण में विदाई के तो, सब सतरंगी हो गया।
हर एक व्यक्ति, हैपी होली कहता ही गया,
फागुन चला गया, अरे फागुन ..................
अतुल अवस्थी *अतुल*
मो.-9415060068
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
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सादर
आदरणीय अतुल भाई , सुन्दर गीत रचना के लिये आपको बधाई ॥
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