बैठ अकेले सोचती ,तुमको दिन और रात
जान हमारी ले गए ,बहते हैं जज्बात /
बहते हैं जज्बात सजल हैं आँखें रहती
टूटा है विश्वास, हर निगाह यही कहती
तुम बिन हैं सुनसान सभी दुनिया के मेले
सरिता रही पुकार, हर रोज बैठ अकेले //
.........................................................
..................मौलिक व अप्रकाशित .............
Comment
मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति पर शिल्पगत त्रुटियाँ रह गयी हैं ...
बैठ अकेले सोचती ,तुमको दिन और रात ................रेखांकित अंश की मात्रा १२ हो रही है
जान हमारी ले गए ,बहते हैं जज्बात
बहते हैं जज्बात सजल हैं आँखें रहती......................एक ही पंक्ति में दो बार 'हैं ' दूसरे हैं को बदला जा सके तो बेहतर होगा
टूटा है विश्वास, हर निगाह यही कहती ...................यहाँ गेयता भी बाधित है, और 'हर निगाह' से आपका क्या तात्पर्य है ?
तुम बिन हैं सुनसान सभी दुनिया के मेले
सरिता रही पुकार, हर रोज बैठ अकेले //.................यहाँ भी रेखांकित अंश में गेयता बाधित है
इस प्रयास पर बधाई स्वीकारें
शुक्रिया आदरणीय जितेन्द्र जी
मर्मस्पर्शी रचना , बधाई आपको आदरणीया सरिता जी
आदरणीय भाई राम जी आपने ठीक कहा मैंने मौलिक में सुधार कर लिया है
आदरणीया शशि जी शुक्रिया
आदरणीय लक्ष्मण जी हार्दिक आभार
सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया। हार्दिक बधाई आपको
तुमको दिन और रात=१२
तुमको दिन औ रात=११ सादर
सुन्दर प्रयास आदरणीय सरिता जी बधाई आपको
आदरणीया सरिता जी सुन्दर कुंडलियों के लिए हार्दिक बधाई .
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