For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ऐसा कोई दिन नहीं गुजरता जब यौन शोषण की घटनाएँ खबरों में नहीं आती। खबर पढ़कर हृदय ग्लानि और अपराध-बोध के दलदल में धँस जाता है। खुद से पूछता हूँ- यह यौन शोषण है क्या? अब आप कहेंगे- कैसा अनपढ़ और गवाँर हूँ। यौन शोषण का अर्थ तक नहीं समझता। तो मैं आपसे पूछता हूँ। क्या आप सही मायने में इसका उत्तर बता सकते हैं? मेरा तात्पर्य उस प्रश्न से ही जुड़ा है। आखिर यह शोषण हमेशा स्त्रियों के साथ ही क्यों होता है? क्या यह शारीरिक रूप से पीड़ादायी है या मानसिक रूप से भी? क्या यह केवल शारीरिक है या पूर्णतः मानसिक? अभी कुछ दिनों पहले की बात है। मैंने अपने एक मित्र से पूछा – ‘समाज में यौन शोषण की असली वजह क्या है?’

‘मानसिक विकृति।‘ उसने तुरंत उत्तर दिया।

‘कुछ लोग मानसिक रूप से बीमार हैं। उन्हें नैतिक-अनैतिक का पता ही नहीं चलता। ऐसे लोग ही इस तरह की घटनाओं को अंजाम देते हैं।‘ उसने अपनी बात को और दृढ़ किया।

‘तो क्या ऐसी विकृति केवल पुरुषों में ही पायी जाती है? क्योंकि किसी स्त्री ने किसी पुरुष का यौन शोषण किया हो। ऐसा तो मैंने कभी नहीं सुना। यदि सुना भी होगा तो याद नहीं आता।“ मैंने उससे पुनः प्रश्न किया।

उसके चेहरे पर मुस्कान तैर गई। फिर उसने कहा – 'ऐसी बात नहीं है। वस्तुतः हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज है। पुरुष ताकतवर हैं। शक्ति और सामर्थ्य दोनों में ही। स्त्रियाँ इतनी सबल कहाँ हैं, जो ऐसी घटनाओं को अंजाम दें सकें। शायद यही कारण है कि पुरुषों द्वारा हीं यौन शोषण की घटनाएँ सामने आती हैं।'

'अच्छा ! यदि बात शक्ति की ही है तो यदि दस लड़कियाँ मिलकर तुम्हें जबरन पकड़ लें और तुम्हारे साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाए, तो क्या वह यौन शोषण कहलाएगा?' मेरे ऐसा पुछते ही वह ज़ोर से हँस पड़ा।

“कैसी बातें करते हो तुम भी?’ शायद मेरा यह सवाल उसे अटपटा महसूस हुआ।

‘क्यों क्या बात हो गई? मैंने तो बस एक उदाहरण लिया था।‘ मेरे ऐसा कहने पर वह थोड़ा गंभीर हुआ और फिर चुटकियाँ लेते हुए बोला- ‘ यौन शोषण तो कहलाएगा, मगर अखबार या न्यूज चैनल पर यह खबर नहीं बनेगी।‘

‘क्यों….’ मैंने पूछा।

‘एक बार में ही मैंने इतने मजे ले लिए। फिर क्यों कोई शिकायत लिखवाने जाऊँगा?’ इतना कहते ही वह निकल पड़ा।

उसके इस उत्तर ने मुझे आकर्षित भी किया और प्रताड़ित भी। पुरुष प्रधान समाज के सबसे कड़वे  सच को, उसने कितनी सहजता से सामने रख दिया था। मैं उसे दूर तक जाते हुए देखता रहा।

मन में खयाल आया- क्या शारीरक संबंध बनाने से महिलाएँ खुश नहीं होती? कैसे खुश होंगी? जन्म से लेकर मृत्यु तक वे अपने कौमार्य (virginity) की रक्षा में हीं लगी रहती हैं। शादी से पूर्व लड़कियाँ अपने कौमार्य को नष्ट होने से बचाने में लगी रहती हैं और शादी के बाद उस कौमार्य के एकाधिकार को सुरक्षित रखने में, क्योंकि अब उस पर अधिकार केवल उनके पति का होता है। ऐसे में किसी अन्य से संबंध बनाने का खयाल भी उन्हें अंदर तक झंकझोर देता है। चाहे उस संबंध से उन्हें नैसर्गिक सुख की अनुभूति हीं क्यों न हुई हो, मगर उन्हें अपनी आँखों के सामने समाज का वहीं क्रोधी और निर्दयी स्वरूप दिखाई देता है, जो या तो उन्हें सभ्यता से निष्काषित कर देगा या चरित्रहीन, पतिता अथवा वेश्या की संज्ञा दे देगा। और यह मानसिक पीड़ा इतनी प्रबल और भयानक होती है जो उनके जीवन को नर्क से भी बदतर बना देती है। मगर ऐसी कोई मानसिक पीड़ा पुरुषों के लिए, समाज में है हीं नहीं। वे तो पुनः अपने जीवन में बेहिचक लौट आते हैं। समाज उनकी भी निंदा करता है, मगर इस तरह उनकी उपेक्षा नहीं करता जैसे स्त्रियों के साथ की जाती है।

सृष्टि के आरंभ से ही स्त्रियों का यौन शोषण होता आया है। कोई भी युग हो या कोई भी काल। पुरुषों ने व्यक्तित्व का अधिकार, उन्हें कभी दिया ही नहीं। मैं उन सभी पुरुषों से पूछता हूँ और खुद को भी उसमें शामिल  करता हूँ कि जब हमने अपने ऊपर कौमार्य के लिए कोई बंधन नहीं बनाया तो फिर स्त्रियों पर ऐसा बंधन क्यों? केवल इसलिए क्योंकि उनका कौमार्य सिर्फ एक बार में ही नष्ट हो जाता है और हमारे लिए ऐसी कोई सीमा नहीं। वर्तमान परिदृश्य और अतीत में फर्क बस इतना है कि उस समय स्त्रियाँ लोक-लाज के भय से बिना कुछ व्यक्त किए, इस मानसिक पीड़ा को अपनी नियति मान लेती थीं और अब, कम-से-कम उनमें यह साहस तो उत्पन्न हुआ है कि वे घर से बाहर निकलती हैं। इस अमानवीय व्यवहार का विरोध करती हैं। मगर क्या वाकई उन्हें न्याय मिलता है? कानून न्याय दे भी दें तो क्या..... समाज उनके प्रति कोई न्याय करता है? न्याय तो उन्हें तब मिलेगा, जब हम यह समझे कि यौन शोषण मात्र एक अपराध, विकृति या कुचेष्टा भर नहीं है। यह एक प्रक्रिया है, जो सदियों से हमारे समाज में जन्मी हर स्त्री को आजीवन गुजरना होता है। चाहे वह वास्तव में किसी यौन शोषण का शिकार हुई हो या नहीं। यह हमारे पुरुष प्रधान समाज की ही उपज है और हमपर अभिमान इस कदर हावी है कि हम पीछे मुड़कर देखना नहीं चाहते। अपने झूठे आदर्शों और सिद्धांतो को तोड़ना नहीं चाहते। परिणाम, यह कुंठा और अधिक विकसित और विस्तृत होती जा रही है।

धीरे- धीरे मुझे धर्म और शास्त्रों में अरुचि सी होने लगी है। क्योंकि वहाँ मैं, ऐसा एक भी उदाहरण नहीं पाता, जहाँ स्त्री को पुरुष के समांतर अधिकार दिये गए हों। जहाँ स्त्री को पुनर्विवाह का अवसर प्रदान किया गया हो। जहाँ उसकी शारीरिक, मानसिक, भौतिक और आर्थिक अधिकारों को पुरुष के समकक्ष बनाया गया हों। मैं एल्बर्ट आइन्स्टाइन को अपने आदर्श के रूप में देखता हूँ। भले ही उसका कारण - मेरी फिजिक्स सब्जेक्ट में रुचि हो। मगर उनके द्वारा दिया गया सिद्धान्त –

‘Nature always follows the simplest rule of Universe.’

जीवन में भी बिलकुल खड़ा उतरता है। पुरुष और स्त्री के बीच आकर्षण प्राकृतिक है। उनके बीच बना संबंध नैतिक भी है और आध्यात्मिक भी। बस आवश्यकता है कि हम स्त्री जाति को भी वे सारे अवसर दें, जो हमने स्वयं के लिए निश्चित किए हैं। उन्हें इस प्रकार की निर्जन यातना का शिकार न बनाएँ। उन्हें भी स्वेच्छा से अपने जीवन के मूल्यों को समझने और आत्मनिर्भर बनने का मौका दें। और अंत में उन सभी स्त्रियों से भी कहना चाहूँगा। यह शरीर आपका है। मन, हृदय, आत्मा आपकी है। इन पर सिर्फ आपका अधिकार है। ईश्वर ने जो भी अंग आपको प्रदान किए हैं, वह आपकी सुख-सुविधा के लिए है। किसी अन्य के लिए नहीं। इन्हें किसी सामाजिक बंधन में मत बाँधिए। यदि बाँधना ही है, तो इन्हें आत्मिक बंधन में बाँधिए, जिनपर अधिकार भी आपका हो और नियंत्रण भी।

                       

                ................मौलिक व अप्रकाशित.........................

Views: 332

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 27, 2014 at 9:09pm

इस लेखनुमा को आये हफ़्ते भर से अधिक हुआ है. इसे मैं लेखनुमा क्यों कह रहा हूँ इसे बाद में स्पष्ट करूँगा. मैं विलम्ब से आया हूँ. लेकिन अभीतक इस प्रस्तुति पर एक भी कोमेंट का न आना थोड़ा आश्चर्य में भी डालता है. ओबीओ के मंच पर किसी प्रस्तुति पर एक हफ़्ते में एक भी कोमेंट का न आना सामान्य घटना नहीं रह गयी है.

इसके तीन कारण हो सकते हैं -

१) प्रस्तुति के तथ्य से पाठकों का पूरी तरह से नावाकिफ़ होना और उस विषय से पाठकों का अपरिचित होना

२) प्रस्तुति के रचयिता का ऐसा इतिहास होना जिसके अनुसार उसके सुधरने की कोई गुंजाइश ही न बची हो.

३) प्रस्तुति का विवादास्पद किन्तु अस्पष्ट तथा तथ्यहीन होना. यानि, लेख की शुरुआत आम से हो और अंत हो इमली से.

उपरोक्त प्रस्तुति मेरी समझ से तीसरी श्रेणी में आ रही है.
मुझे यही प्रतीत हो रहा है कि इस लेख का लेखक ऐसे किसी विषय पर लिखने के क्रम में न केवल असक्षम है, बल्कि इस विषय के कई विन्दुओं की संवेदना को समझता भी नहीं है.

शारीरिक चोट जैसी भी हो उससे निजात मिल ही जाती है. यहाँ समस्या चोट के मानसिक होने की है. मानसिक चोट व्यक्ति के मन पर ही नहीं शरीर पर भी भयंकर रूप से नकारात्मक प्रभाव डालते हैं.
सवाल यहाँ शारीरिक बराबरी को अनावश्यक रूप से पटल पर लाने का नहीं है. पुरुष का प्रतीक पिता का विन्दुवत संबल सहयोग और समर्थन स्त्री का प्रतीक माँ के वात्सल्य और सर्वसमाहिता की बराबरी कर ही नहीं सकता. लेख में इस अत्यंत आवश्यक विन्दु का सर्वथा अभाव है.

इसी कारण, इस प्रस्तुति को मैं लेखनुमा कह रहा हूँ.

सत्तर के दशक में विश्व पटल पर एक अत्यंत विवादास्पद फ़िल्म आयी थी, चर्चित भी हुई थी - मैन कैन्नॉट बी रेप्ड.  इस फ़िल्म का शीर्षक ही बता देता है कि उसका विषय क्या है और उसका निर्णय क्या रहा होगा.

इस मंच को हार्दिक धन्यवाद कि ऐसे लेख भी समय-समय पर स्थान पाते हैं. लेख के स्तर को संज्ञान में लेकर आवश्यक बहस की जाय.  यह आज की मांग है
सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
19 minutes ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
5 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"धन्यवाद सर, आप आते हैं तो उत्साह दोगुना हो जाता है।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सुझाव के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। आपकी उपस्थिति और स्नेह पा गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ । आपके अनुमोदन…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service