बह्र : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
कहीं भी आसमाँ पे मील का पत्थर नहीं होता
भटक जाता परिंदा, गर ख़ुदा, रहबर नहीं होता
कहें कुछ भी किताबें, देश का हाकिम ही मालिक है
दमन की शक्ति जिसके पास हो, नौकर नहीं होता
बचा पाएँगी मच्छरदानियाँ मज़लूम को कैसे
यहाँ जो ख़ून पीता है महज़ मच्छर नहीं होता
मिलाकर झूठ में सच बोलना, देना जब इंटरव्यू
सदा सच बोलता है जो कभी अफ़सर नहीं होता
ये पीली पत्तियाँ, पत्ते हरे आने नहीं देतीं
अगर इनको गिराने के लिये पतझर नहीं होता
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत बहुत धन्यवाद BHUWAN NISTEJ जी
बहुत बहुत शुक्रिया Baidyanath Saarthi जी
उप्लब्धिमुलक रचना के लिए हार्दिक बधाई कबूल करें आदरणीय...
बहुत अलग ग़ज़ल.... आम शब्दों को अच्छी तरह से प्रयोग किया है आपने !..
बचा पाएँगी मच्छरदानियाँ मज़लूम को कैसे
यहाँ जो ख़ून पीता है महज़ मच्छर नहीं होता.....बहुत खूब आदरणीय ...लाजवाब
बहुत बहुत शुक्रिया by Dr.Prachi जी
बहुत बहुत शुक्रिया Saurabh जी। स्नेह बना रहे
बहुत बहुत शुक्रिया बृजेश जी
बहुत बहुत शुक्रिया laxman dhami साहब
बहुत बहुत धन्यवाद Mukesh Verma "Chiragh" जी
बहुत बहुत शुक्रिया विजय मिश्र जी
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