बह्र : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
कहीं भी आसमाँ पे मील का पत्थर नहीं होता
भटक जाता परिंदा, गर ख़ुदा, रहबर नहीं होता
कहें कुछ भी किताबें, देश का हाकिम ही मालिक है
दमन की शक्ति जिसके पास हो, नौकर नहीं होता
बचा पाएँगी मच्छरदानियाँ मज़लूम को कैसे
यहाँ जो ख़ून पीता है महज़ मच्छर नहीं होता
मिलाकर झूठ में सच बोलना, देना जब इंटरव्यू
सदा सच बोलता है जो कभी अफ़सर नहीं होता
ये पीली पत्तियाँ, पत्ते हरे आने नहीं देतीं
अगर इनको गिराने के लिये पतझर नहीं होता
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है धर्मेन्द्र जी।बधाई स्वीकार करें!
बचा पाएँगी मच्छरदानियाँ मज़लूम को कैसे
यहाँ जो ख़ून पीता है महज़ मच्छर नहीं होता | वाह वाह !
बढ़िया ग़ज़ल हुई है धर्मेन्द्र जी | बधाई !
अशआर पसंद करने के लिए तह-ए-दिल से शुक्रगुज़र हूँ बागी जी. यहाँ 'जब इन्टरव्यू' को `जबिन्टरव्यू' की तरह पढ़ा जाएगा जो मेरे विचार में अरूज़ के हिसाब से जायज़ है
तह-ए-दिल से शुक्रगुजार हूँ rajesh kumari जी
//बचा पाएँगी मच्छरदानियाँ मज़लूम को कैसे
यहाँ जो ख़ून पीता है महज़ मच्छर नहीं होता//
आहा, बहुत ही खुबसूरत शेर कहा है भाई, बहुत पसंद आया।
मिलाकर झू/ठ में सच बो/लना, देना/ जब इंटरव्यू
इस मिसरे को एक बार देख लें भाई,
मिलाकर झूठ में सच और साक्षात्कार फिर देना ……… ऐसे बात बनेगी क्या ?
अच्छी ग़ज़ल हुई है, बधाई आदरणीय धर्मेन्द्र जी।
ये पीली पत्तियाँ, पत्ते हरे आने नहीं देतीं
अगर इनको गिराने के लिये पतझर नहीं होता-----वाह्ह्ह्हह ग़ज़ब का शेर ...पूर्ण सत्य एवं कटाक्ष भी
शानदार ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई
मिलाकर झूठ में सच बोलना, देना जब इंटरव्यू
सदा सच बोलता है जो कभी अफ़सर नहीं होता
ये पीली पत्तियाँ, पत्ते हरे आने नहीं देतीं
अगर इनको गिराने के लिये पतझर नहीं होता
बहुत सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय
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