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कातिल हँसी तू इक दफा जो हमको देख ले
किस की हो फिर मजाल भी जो तुझको देख ले
औरो से हूँ जुदा तुझे भी होगा कल यकी
मलिका-ए- हुस्न पहले जो तू सबको देख ले
दिलकश हसींन कातिलों में कुछ तो बात है
धड़कन थमें जो इक दफा भी उसको देख ले
दिल चाहता जिसे उसे मैं कहता हूँ खुदा
जब सामने खुदा तो कोई किसको देख ले
सागर की आरजू कभी भी थी नहीं मेरी
आँखों में जाम भर के ही तू हमको देख ले
नफरत तुझे मरीज से है मानते हुयी
मेरी ग़ज़ल में तू मरीजे गम को देख ले
इस नज्म में छुपी हुई है दास्ताँ मेरी
कातिल तू इसमें अपने हर सितम को देख ले
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय जीतेन्द्र जी ..हासला अफजाई के लिए हार्दिक धन्यवाद ..सादर
आदरणीया अनुपमा जी ..प्रोत्साहन के लिए तहे दिल धन्यवाद ..सादर
आदरणीय अभिनव जी ..आपका स्नेह बस यूं ही मिलता रहे ..तहे दिल धन्यवाद के साथ ..सादर
बहुत खुबसूरत गजल आदरणीय डा. आशुतोष जी, आपको हार्दिक बधाई
खूब !! बहुत खूब ! आ0 आशुतोष जी बहुत बधाई इस खूबसूरत गजल के लिए ।
बहुत खूब ग़ज़ल आदरणीय। ………। बधाई !!!
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