बात भी दिल की तुझे हम अब बतायें कैसे
साथ जो हमने बिताये पल भुलायें कैसे
बंद रखना तू न ओठों को बता दे इतना
बात जो दिल पर लिखी तुमने मिटायें कैसे
मौत भी करती रही है वेवफाई मुझसे
पास हम अपने बुलायें तो बुलायें कैसे
आपकी तो चाहतो में खुद जले थे ऐसे
लाश भी कोई हमारी अब जलायें कैसे
खोल कर अपने लबों को तू बता दे यारा
दाग दामन पर लगे हैं वो धुलायें कैसे
मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी
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आपके आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन का सदैव आकांक्षी.. मेरा प्रणाम स्वीकार करें, आदरणीय Saurabh Pandey जी
बह्र को निभाने के लिहाज से आपकी एक सफल कोशिश देख रहा हूँ. वैसे एक जगह काफ़िया पर बात अटक गयी दिखी. जैसे - लाश भी कोई हमारी अब जलायें कैसे... कोई के बाद जलायें ? या जलाये ? यदि जलायें तो भाषा व्याकरण के अनुसार गलत .. जलाये तो काफ़िया गलत. बहरहाल आपकी कोशिश भली लगी है.. भाईजी
आपके आर्शीवाद एवं मार्गदर्शन का सदैव आकांक्षी मेरा प्रणाम स्वीकार करें। आदरणीय Baidyanath Saarthi जी
आपके आर्शीवाद एवं मार्गदर्शन का सदैव आकांक्षी मेरा प्रणाम स्वीकार करें। आदरणीय गिरिराज भंडारी जी
आपके आर्शीवाद एवं मार्गदर्शन का सदैव आकांक्षी मेरा प्रणाम स्वीकार करें। आदरणीय जितेन्द्र गीत जी
आपके आर्शीवाद एवं मार्गदर्शन का सदैव आकांक्षी मेरा प्रणाम स्वीकार करें। आदरणीय अखिलेश कष्ण जी
आपके आर्शीवाद एवं मार्गदर्शन का सदैव आकांक्षी मेरा प्रणाम स्वीकार करें। आदरणीया coontee mukerji जी
बहुत मार्मिक गज़ल आशिक के खून से लिखे हों जैसे.....गहमरी जी जो रचना पाठक के दिल छू जाए वहीं सार्थक रचना होती है.बधाई.
अच्छे भाव और सुंदर शब्दों के साथ गज़ल कही। बधाई
आपकी तो चाहतो में खुद जले थे ऐसे
लाश भी कोई हमारी अब जलायें कैसे
खोल कर अपने लबों को तू बता दे यारा
दाग दामन पर लगे हैं वो धुलायें कैसे.............वाह! क्या बात कही. इन शेर पर बहुत बहुत बधाई आदरणीय अखंड जी
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