सह विनाश या सह विकास
दुनियाँ
परमाणु बम पर बैठी हुयी है
बस एक हिट की –
ज़रूरत है ,
मनु – युग मे जाने की
ज़रूरत नहीं होगी
तब मालूम होगा
अस्तित्व
सह विनाश का ।
पर यदि
नयी उमर की नयी फसल -
देखनी है
तो सम्राट अशोक को
फिर से
बुद्ध के शरण मे आना होगा
गांधी और किंग की भावनाओं को
अपनाना होगा
फिर कल – कारखानों से
सुमधुर संगीत जो निकलेगा
तब मालूम होगा
अस्तित्व
सह विकास का ।
------- मौलिक और अप्रकाशित -------
Comment
आदरणीय ब्रह्मचारी जी , आज समूचा विश्व अशांति के दौर से गुजर रहा है , ऐसे में शांति की तलाश का खूबसूरत सन्देश देती रचना के लिये आपको बधाइयाँ
बहुत अच्छी कविता! आपको हार्दिक बधाई!
बहुत उम्दा रचना ..बधाई आ० ब्रम्हचारी जी
आदरणीय ब्रह्मचारी जी , शांति की तलाश के अलावा शांति का कोई विकल्प नही होता !! बहुत खूबसूरत सन्देश देती रचना के लिये आपको बधाइयाँ ॥
बहुत खूब रचना , बधाई आपको आ0 ब्रांहचारी जी ।
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