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जिंदगी मैं अभी भी कुछ इम्तेहान बाकी हैं
गुजरी हैं आंधियां अभी तूफ़ान बाकी हैं
मैं दूर तेरी महफ़िल से जाऊं भी तो कैसे
महफ़िल मैं तेरी मेरे भी कदरदान बाकी हैं
बे-ईमानों की दुनिया मैं घूमता हूँ शान से
जब तक मेरे सीने मैं मेरा ईमान बाकी है
लौटकर के मौत भी घर से मेरे खाली गई
मेरी माँ का कोई ऐसा वरदान बाकी है
सो रहा है मुल्क मेरा जो सुकूं और चैन से
सरहद पे जान लुटाता हुआ जवान बाकी है
तुम जलाके बस्तियां कर दो हमें बे-घर भले
जमीं बिछौना ओढने को तो आसमान बाकी है
तुम ढूंढते फिरते हो जिसे मंदिरों मैं सारी उमर
कैसे मिलेगा दिल मैं जब तेरे शैतान बाकी है
तुम फिजूल तीर तीखे अपनों पे चलाते रहे
तरकश है खाली बस हाथ मैं कमान बाकी है
बेटा कमाने दौलतें देश से विदेश चला गया
तीरथ लेके जाये कहाँ वो संतान बाकी है
इंसानियत दुनिया मैं जिंदा रहेगी तब तलक
जब तक के आखिरी नेक दिल इंसान बाकी है
( मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
आदरणीय मुकेश वर्मा जी, आपने कोशिश की संजीदगी को सराहा उसके लिए आपका हार्दिक आभार !
भाव वास्तव में बहुत अच्छे हैं। शिल्प के लिए गुरुजनों की बातों पर जरूर अमल कीजिएगा। सादर।
आदरणीय मीना पाठक जी, गजल आपको अच्छी लगी आपका हार्दिक धन्यवाद !
आदरणीय राजेश्कुमारी जी, गजल के भाव आपको अच्छे लगे इससे लिखना कुछ हद तक सार्थक हुआ, अशआर बहर से बाहर हैं इस ओर इंगित कराने के लिए आपका हार्दिक आभार निरंतर प्रयास यही ही कि शिल्प के अनुसार लिख सकूँ ...... ऐसे ही मार्गदर्शन करते रहिये ...... आदरणीय !
आदरणीय भाई शिज्जू आपने प्रयास को सराहा उसके लिए आपका दिली शुक्रिया साथ ही ..... आपके सुझाव का हार्दिक आभार !
आदरणीय भाई जीतेंद्र जी ,, गजल के शेर आपको पसंद आये आपकी और उनपर आपकी उन्मुक्त प्रशंशा के लिए हार्दिक आभार आपका ! ऐसे ही स्नेह बनाए रखिये !
आदरणीय अंजू मिश्रा जी, हार्दिक धन्यवाद आपका !
भाई अनुराग जी, आपका हार्दिक धन्यवाद !
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी, आपका हार्दिक आभार उत्साहवर्धन के लिए !
आदरणीय गुमनाम जी, भाव आपको अच्छे लगे जानकर खुशी हुई......... हार्दिक आभार आपका !
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