हाथ धरे बैठे नेताजि , नौका कैसे होवे पार !!
कैसे जीतें युद्ध चुनावी , लगा हुआ नेता दरबार !
सबके सब भिड गय जुगत मैं, रेडी खड़े सभी लठमार !!
भरा दिया पर्चा नेता का, भीड़ इकट्ठी हुई अपार !
लगा दिया फोटु भारी सा, होने लगा खूब परचार !!
पर्चा भर नेताजी पहुँचे , परम प्रभू भोले के द्वार !
परिक्रमा नेताजी करते , डोक लगाते बारमबार !!
मन मैं सिमर रहे नेताजि , हे भगवन कर दो उपकार !
बीस किलो का घन्ट चढाऊं , पार लगा दो अबकी बार !!
आगे बढ़ चले नेताजी , गले पहन फूलों का हार !
पीछे पीछे गुर्गे चलते , करते जाते जय जयकार !!
खोल दिय मुख संदूकों के , नोट ले गये ठेकेदार !
मुरगा दारु रोज छानते , पतझड मैं आ गई बहार !!
आ गया दिन वो भी देखो , लंबी लंबी लगी कतार !
तक धिना-धिन नेता नाचे , ठपपे की जब पडती मार !!
गिनती हुई आज मतों की , जीता कौन कौन की हार !
नेताजि गिर पड़े धरा पर , हो गया उनका बन्टाधार !!
तेवर देख जनमानस के , नेताजी हो गय लाचार !
क्यों रुठी जनता नेता से , उसपर करलो तनिक विचार !!
महंगाई भी खूब बढ़ी , और बढाया भ्रष्टाचार
घुटाले करने वालो को , खुदहि खा गया भ्रष्टाचार
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय सौरभ जी, आपके प्रोत्साहन और शुभेक्षाओं का हार्दिक आभार !
बहुत अच्छे !
प्रदत्त सुझावों पर ध्यान दें और सतत अभ्यास करें.
शुभेच्छाएँ
आदरणीय प्राची जी, आपकी शुभकामनाओं के लिये आपका हार्दिक आभार ........ प्रयास पर आपकी सराहना पाकर उत्साहवर्धन हुआ और रचना मैं शिल्पगत त्रुटियों का ज्ञान हुआ ऐसे ही मार्गदर्शन करते रहिये जिससे इन कमियों को भविष्य मैं दूर करने मैं सहायता मिले आपके सुविचारों और सुझावों का हार्दिक धन्यवाद आदरणीय प्राची जी !
चौपई छंद पर प्रयास के लिए बधाई आ० सचिन देव जी
चुनावी समय में नेताजी के क्रियाकलापों का सुन्दर वर्णन किया है और अंत में हार का कारण भी बता दिया ... कथ्य विन्यास संतुलित है , लेकिन शिल्प निर्वहन ठीक प्रकार से नहीं हुआ है ...आपने कई जगह विषम चरण की मात्रा १६ ले ली है और यदि १५ है तो अंत गुरु-लघु की जगह लघु-गुरु से हो रहा है....
शुभकामनाएं
आदरणीय महिमा जी, हार्दिक आभार आपका प्रोत्साहन के लिये !
मजेदार रचना , अच्छा कटाक्ष किया आपने ..बधाई आपको
आदरणीय गिरिराज जी, आपका हार्दिक आभार प्रोत्साहन और सुझाव के लिये !
आदरणीय सचिन भाई , चौपाई छंद के प्रयास के लिये बधाइयाँ, मुझे लगता है विधान को एक बार आपको पढना जरूर चाहिये था , मात्रा और तुकांतता दोनो मे कमियाँ लग रही हैं ।
अरुण भाई, आपका हार्दिक आभार उत्साहवर्धन और सुझावों के लिये !
आदरणीय जीतेंद्र जी, आपका हार्दिक आभार उत्साहवर्धन के लिये !
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