मेरे अंजुमन में रौनकें बेशक़ कम होंगी ज़रूर
क्या सोच के दोज़ख़ की तरफ़ चल दिए हज़ूर
आपने तो एक बार भी मुड़के देखा नहीं हमें
न जानें था किस बात का अपने आपपे गरूर
यह वक़्त किसी के लिए रुक जाएगा यहाँ
निकाल देना चाहिए सबको दिमाग़ से यह फ़ितूर
चढ़ जाए एक बार तो हर्गिज़ उतरता ही नहीं
क़लम का हो शराब का हो या शबाब का हो सरूर
मासूम से थे हम 'दीपक' शायर 'कुल्लुवी'हो गए
हमसे क्या आप खुद से भी हो गए बहुत दूर
दीपक कुल्लुवी
पाराद्वीप उड़ीसा
17-4-14
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
धन्यवाद पाठक जी
दीपक'कुल्लुवी'
गीतिका जी,अरुन जी रचना की विधा,बह्र से वाक़िफ़ नहीं हूँ मैं.… मेरे लिए यह मेरी अंतर्मन से लिखी केवल एक रचना है मैं अपनी लेखनी को हर तरह की बंदिशों से आज़ाद रखना चाहता हूँ किसी क़िस्म के दायरे में कैद नहीं करना चाहता क्योंकि मैं विद्वान नहीं। मन में जो ख्याल आया काग़ज़ पे उतार लिया इसलिए हिंदी,उर्दू के सब विद्वानों,प्रकांड पंडितों से मुआफ़ी चाहूँगा इस कमअक्ली के लिए।
जब वक़्त था, सीखा नहीं अब क्या खाक़ कर पाएँगे
चंद अशआर बचे हैं झोली में उन्हें सुना के निकल जाएँगे …।
दीपक'कुल्लुवी'
भाव अच्छे लगे आदरणीय .......... हार्दिक बधाई आपको
आदरणीय बह्र से अवगत कराएँ !!!
हक़ीक़त
हमनें तो अपना दर्द-ओ-ग़म आपके सामने रखा है
अब गीत समझो कविता समझो या समझो शेर-ओ-ग़ज़ल
दीपक 'कुल्लुवी' तो पागल है नाप तोल करना न आया
ग़ज़लों का वज़न तो कम ही रहा बस अपना ही वज़न बढ़ाया
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मेरे पिताश्री जयदेव 'विद्रोही' जी भी इस बात से खफ़ा रहते हैं कि मैंने कुछ सीखा नहीं.....
shukriya Jitendra ji for your valuable words
यह वक़्त किसी के लिए रुक जाएगा यहाँ
निकाल देना चाहिए सबको दिमाग़ से यह फ़ितूर............सौ फीसदी सत्य
रचना पर बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय दीपक जी
Giriraj Ji,Mukesh ji,Laxman ji aap sabka dhanyavad.galtiyon ke lie kshama kya kare school mein nalayak vidyarthi rhe hain jyada seekh nhin pae..koshish karenge zarur
आ. दीपक भाई , सुन्दर रचाना के लिये आपको बधाइयाँ !! अगर आपने गज़ल कही है तो बह्र का उल्लेख ज़रूर कर दिया कीजिये ।
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