मैं पूँजीवादी मशीनरी का चमचमाता हुआ पुर्ज़ा हूँ
मेरे देश की शिक्षा पद्धति ने
मेरे भीतर मौजूद लोहे को वर्षों पहले पहचान लिया था
इसलिए फ़ौरन सुनहरे सपनों के चुम्बक से खींचकर
मुझे मेरी जमीन से अलग कर दिया गया
अभिभावकों और अध्यापकों ने
कभी मार से तो कभी प्यार से
मेरी अशुद्धियों को दूर किया
अशुद्धियाँ जैसे मिट्टी, हवा और पानी
जो मेरे शरीर और मेरी आत्मा का हिस्सा थे
तरह तरह की प्रतियोगिताओं की आग में गलाकर
मेरे भीतर से निकाल दिया गया भावनाओं का कार्बन
ताकि मैं मशीन की तीव्र गति से उत्पन्न आघातों से
एक बारगी टूटकर बिखर न जाऊँ
और मशीन को न सहना पड़ जाय भारी नुकसान
मुझमें मिलाया गया तरह तरह की सूचनाओं का क्रोमियम
ताकि हवा, पानी और मिट्टी
मेरी त्वचा तक से कोई अभिक्रिया न कर सकें
अंत में मूल वेतन और महँगाई भत्ते से बने साँचे में ढालकर
मुझे बनाया गया सही आकार और नाप का
मैं अपनी निर्धारित आयु पूरी करने तक
लगातार, जी जान से इस मशीनरी की सेवा करता रहूँगा
बदले में मुझे इसके और ज्यादा महत्वपूर्ण हिस्सों में
काम करने का अवसर मिलेगा
मेरे बाद ठीक मेरे जैसा एक और पुर्जा आकर मेरा स्थान ले लेगा
मैं पूँजीवादी मशीनरी का चमचमाता हुआ पुर्ज़ा हूँ
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
शिक्षा पद्धति , अभिभावकों की अपेक्षाएं, शिक्षकों का दिशादर्शन जिस प्रारूप में एक इंसान को इंसान से यांत्रिक सामान में तब्दील कर देता है... उस पर बहुत संवेदनशीलता और बारीकी से प्रस्तुत हुई है आपकी ये रचना
बहुत सुन्दर
हार्दिक बधाई
आज के मशिनरी युग में मानव की मशीनरी सेवा एवं जीवन यापन का सटीक वर्णन इस प्रस्तुति में हुआ है अतएव हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय धर्मेन्द्र जी
तरह तरह की प्रतियोगिताओं की आग में गलाकर
मेरे भीतर से निकाल दिया गया भावनाओं का कार्बन
ताकि मैं मशीन की तीव्र गति से उत्पन्न आघातों से
एक बारगी टूटकर बिखर न जाऊँ
और मशीन को न सहना पड़ जाय भारी नुकसान...............वाह! बहुत सुन्दरता से सच्चाई को बयां किया है. इंसान के जीवन में इतने विश्लेषण किये जाते है की उसका जीवन, यन्त्र सा हो जाता है
बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय धर्मेन्द्र जी
आदरणीय आपकी इस रचना पर तो मैं सिर्फ कहूँगा ..वाह क्या बात है ..ताजगी से लवरेज, मौलिक चिंतन का आत्मसात किये हुए रचना ..बहाव में बहती हुई सहज..हा पर लगता है और कसी जा सकती है .मेरी तरफ से ढेर सारी बधाई सादर
आदरनीय धर्मेन्द्र भाई , सर्विस क्लास की सच्चाई को आपने चन्द लाइनो मे सुन्दरता से बयान किया है । बधाइयाँ आपको !!
आज के मशीनरी युग का बहुत ही सार्थक रचना....आपको हार्दिक बधाई.
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