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नन्हीं सी चिनगारी

निष्प्राण कभी लगता
जीवन
निर्मम समय-प्रहारों से
सूख-बिखरते,बू खोते
सुरभित पुष्प अतीत के.

निश्चेत 'आज' भी होता
भावी शीतल-शुष्क
हवाओं की आहट पाने को.

फिर भी कुछ अंश
जिजीविषा के रहते
गतिमान रखें जो तन को
निरा यंत्र-सा.

जो हेतु बने
दाव,हवन,होलिका के
या अस्तित्व मिटाती
झंझावर्तों में

चिनगारी...
वही एक नन्हीं सी.

द्युतिमान रहूँ मैं भी
हों तूफान,थपेड़े
या ग्रहण छाएं
अस्तित्व पर
तुम्हारी तरह
अंतिम श्वास तक.

-विन्दु
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by Vindu Babu on May 5, 2014 at 5:46am

आदरणीया कल्पना दी,

आपका बहुत शुक्रिया।

सादर

Comment by Vindu Babu on May 5, 2014 at 5:45am

आदरणीय विजय निकोर सर:
यह आपका ही सहयोग और आशीर्वाद है आदरणीय।
यदि रचना पाठक के हृदय में थोड़ी सी भी सम्वेदना फूंकती है तो यह रचनाकार की बहुत बड़ी सफलता है।
आपकी प्रतिक्रिया ने बहुत मनोबल बढ़ाया है आदरणीय..बहुत आभारी हूँ आपकी।
सादर

Comment by Vindu Babu on May 5, 2014 at 5:41am
आदरणीया अन्नपूर्णा दीदी,
आपके सराहना पूर्ण शब्दों के लिए आपको हार्दिक आभार।
सादर
Comment by Vindu Babu on May 5, 2014 at 5:34am

आदरणीया कुंतीमै'म आपने रचना को सुंदर कहा...मुझे अच्छा लगा।

आपको सादर धन्यवाद आदरणीया।

Comment by Vindu Babu on May 4, 2014 at 6:24am
आदरणीया मीना दीदी,
रचना की सराहना के लिए आपको सादर धन्यवाद!
Comment by कल्पना रामानी on May 3, 2014 at 8:25pm

बहुत सुंदर प्रभावी कविता के लिए हार्दिक बधाई आपको

Comment by vijay nikore on May 3, 2014 at 12:07am

आदरणीया विन्दु जी,

तहों से आती ... अतीत, वर्तमान और भावी संवेदनाओं को समेटती आपकी यह रचना अति प्रभावशाली लगी।

पढ़ते-पढ़ते मन बिखरता गया, मन सिमटता गया और मैं उसे द्युतिमान चिनगारी से प्रोत्साहित करता रहा।

आपको इस रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीया। ऐसे ही लिखती रहें। सादर।

Comment by annapurna bajpai on May 2, 2014 at 11:39pm

सुंदर भाव पूर्ण रचना । प्रिय वंदना , बधाई इस सुंदर रचनाकर्म  के लिए । 

Comment by coontee mukerji on May 2, 2014 at 3:13am

सुंदर रचना के लिये हार्दिक बधाई.

Comment by Meena Pathak on May 1, 2014 at 1:16pm

बहुत सुन्दर रचना .. बधाई आप को 

कृपया ध्यान दे...

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