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यूँ ही सोचा ज़माने की रविश भी जान ली जाये - ग़ज़ल

1222/ 1222/ 1222/ 1222

यूँ ही सोचा ज़माने की रविश भी जान ली जाये

पसे तस्वीर सूरत किसकी है पहचान ली जाये               पसे तस्वीर= तस्वीर के पीछे

 

ज़रा देखूँ कि सच कितना है तेरे इन दिखावो में

चलो कुछ देर को तेरी कही भी मान ली जाये         

 

कभी तो आप अपने तज़्रिबे से तौलें सच्चाई

ज़रूरी तो नहीं है हाथ में मीज़ान ली जाये                    मीज़ान =तराजू

 

नहीं लगती मुझे अनुकूल मौसम की तबीयत क्यूँ

बरस जायें न ओले जल्द ही छत तान ली जाये

 

घिरे हैं आफतों से इन दिनों अंजाम जो भी हो

हर इक दम सामना करने की दिल में ठान ली जाये

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by शिज्जु "शकूर" on May 4, 2014 at 11:39am

आदरणीय लक्ष्मण सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on May 4, 2014 at 11:38am

आदरणीय गिरिराज सर मेरी रचना को मान देने के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on May 4, 2014 at 11:38am

आदरणीय डॉ. कंवर सर आपका हार्दिक आभार

Comment by coontee mukerji on May 4, 2014 at 12:20am

ज़रा देखूँ कि सच कितना है तेरे इन दिखावो में

चलो कुछ देर को तेरी कही भी मान ली जाये  ......बहुत खूब.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 3, 2014 at 8:26pm

आदरणीय शिज्जू भाई , लाजवाब ग़ज़ल कही है

कुछ इक बातों को अपने तज़्रुबे से तौल के देखें

ज़रूरत क्या कि अपने हाथ में मीज़ान ली जाये  ...बहुत खूब कहा आख़िर अनुभव भी टोकोई चीज़ है


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Comment by गिरिराज भंडारी on May 3, 2014 at 7:48pm

आदरणीय शिज्जू भाई , लाजवाब ग़ज़ल कही है ! पूरी ग़ज़ल बेमिशाल हैं , किसी के शे र को चुन नही पारहा हूँ !  पूरी गज़ल के लिये मेरी दिली दाद स्वीकार करें ॥

Comment by कंवर करतार on May 3, 2014 at 6:06pm

प्रिय शकूर भाई बढ़िया ग़ज़ल वन पाई है ,बहुत बहुत बधाई I 


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Comment by शिज्जु "शकूर" on May 3, 2014 at 5:32pm

आदरणीय मुकेश भाई आपका बहुत बहुत शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on May 3, 2014 at 5:32pm

आदरणीय अखिलेश सर आपका हार्दिक आभार


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Comment by शिज्जु "शकूर" on May 3, 2014 at 5:31pm

आदरणीय नादिर भाई आपका तहेदिल से शुक्रिया

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