22122
लाचार हो क्या?
सरकार हो क्या?
छुट्टी पे छुट्टी,
इतवार हो क्या?
छूते ही ज़ख़्मी,
औजार हो क्या?
बेचा है खुद को,
बाज़ार हो क्या?
तारीफ कर दूँ,
अशआर हो क्या?
खुद से ही बातें,
बीमार हो क्या?
*****************
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
आदरणीय राम भाई , इतनी छोटी बह्र मे कमाल की ग़ज़ल कही है , सभी शे र लाजवाब हैं , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ॥
राम भाई इस ग़ज़ल से आपने एकदम से चौकाया है, छोटी बहर पर कहन को जिस खूबसूरती से निभाया है वह तारीफ़ के काबिल है, सभी अशआर एक से बढ़कर एक है, कुल मिलाकर एक खुबसूरत ग़ज़ल प्रस्तुत हुई है, बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें ।
छोटी बह्र में बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल भाई राम बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
छूते ही ज़ख़्मी,
औजार हो क्या?...........वाह!क्या गजब कहा
बेचा है खुद को,
बाज़ार हो क्या?..........यह तो करारा प्रहार हुआ
खुद से ही बातें,
बीमार हो क्या?............ओह!! अवसाद से ग्रसित :))
छोटी बह्र पर बहुत लाजवाब गजल कही आपने आदरणीय राम शिरोमणि जी, दिली बधाइयाँ स्वीकारें
हार्दिक आभार आदरणीया मीना जी …। सादर
वाह वाह पाठक जी .. क्या बात है .. बेहतरीन गज़ल .. बधाई
हार्दिक आभार आदरनीय भाईं गुमनाम महिमा जी,,,,,,,,,,सादर
हार्दिक आभार आदरणीया महिमा जी,,,,,,,,,,सादर
हार्दिक आभार आदरणीय भाई अजय जी,,,,,,,,,,सादर
हार्दिक आभार आदरणीय कृष्णा सिंह जी,,,,,,,,,,सादर
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