For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल रचना ----वो पल

प्‍यार तुमसे किया तुम निभा ना सके
दर्द दिल का कभी हम मिटा ना सके
जिन्‍दगी तो हमारी रही ना मगर
मौत से हाथ भी हम मिला ना सके
चाँद कह कह पुकारा हमे जो तुने
उन पलो को कभी हम भुला ना सके
ना किये वेवफाई कभी हम मगर
बात का हम भरोसा दिला ना सके
टूट कर बिखर तो हम गये हैं मगर
खा लिये हम जहर पर खिला ना सके
रात भर आइ सपनो में तुम तो मगर
बात अपनी तुझे हम बता ना सके
लौट आता सुहाना समय वो मगर
गीत भी प्‍यार के हम सुना ना सके
थक गये है बहुत अब बढ़े ना कदम
हाथ मेरी तरफ वो बढ़ा ना सके
हम निभाते रहे जो था  वादा किया
प्‍यार अपना मगर हम बचा ना सके
ना जलाओ हमें यार बातें सुनो
लाख दीपक अधेरा मिटा ना सके
आ मिलो फिर तुझे है कसम प्‍यार की
प्‍यार फिर दो हमें जो  भुला ना सके

मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी

Views: 688

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अरुन 'अनन्त' on May 16, 2014 at 11:59am

आदरणीय अखंड भाई जी आपने (मुतदारिक मुसम्मन सालिम) बह्र पर ग़ज़ल कहने का बहुत सुन्दर प्रयास किया है, कुछ जगह ध्यान देने की आवश्यकता है

१. ग़ज़ल में ना का प्रयोग नहीं होता केवल न का होता है.

२. चाँद कह कह पुकारा हमे जो तुने
उन पलो को कभी हम भुला ना सके.... इस शेअर में  तुने का प्रयोग अटपटा लगा और तकबुले रदीफ़ का दोष भी उत्पन्न हो गया.

३. ना किये वेवफाई कभी हम मगर.... थोडा और कसा जा सकता था
बात का हम भरोसा दिला ना सके... हम का प्रयोग दोनों जगह हुआ है आदरणीय जोकि उचित नहीं है कुछ बदलाव हो सकता था.

४. टूट कर बिखर तो हम गये हैं मगर... इसे ऐसा किया जा सकता है यदि आप उचित लगे टूट कर हम बिखर तो गए हैं मगर
खा लिये हम जहर पर खिला ना सके..हम शब्द यहाँ भी दो बार आया है

५. रात भर आइ सपनो में तुम तो मगर
बात अपनी तुझे हम बता ना सके  ... तुम और तुझे के प्रयोग के कारण इस शेअर में शुतुर्गुबा दोष उत्पन्न हो गया.

६. लौट आता सुहाना समय वो मगर
गीत भी प्‍यार के हम सुना ना सके... इसे ऐसा किया जा सकता है, गीत हम प्यार के गुनगुना ना सके.

७. थक गये है बहुत अब बढ़े ना कदम
हाथ मेरी तरफ वो बढ़ा ना सके .. कसावट की मांग करता हुआ शेअर

८. हम निभाते रहे जो था  वादा किया
प्‍यार अपना मगर हम बचा ना सके.. इसे भी पुनः देख लें.

९. ना जलाओ हमें यार बातें सुनो
लाख दीपक अधेरा मिटा ना सके

१०. आ मिलो फिर तुझे है कसम प्‍यार की ... तुझे की जगह तुम्हें अधिक उपयुक्त होगा.
प्‍यार फिर दो हमें जो  भुला ना सके ... हमें के साथ सकें होगा आदरणीय सके नहीं.

आदरणीय अखंड भाई जी आपसे अनुरोध है कि पाठशाला का अनुसरण करें और ग़ज़ल पर वहां मौजूद विस्तृत जानकारी प्राप्त करें. प्रयासरत रहें. सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 15, 2014 at 6:41pm

अति सुन्दर ! बधाइयाँ !

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 15, 2014 at 4:58pm

आदरणीय अखंड जी चाँद कह कह पुकारा हमे जो तुने..तुने शब्द के प्रयोग में थोडा संदेह है ,,मुझे ज्यादा पता नहीं है अन्यथा न लीजियेगा उम्दा शेरो से सुसज्जित इस ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई के साथ ..सादर

Comment by भुवन निस्तेज on May 14, 2014 at 9:19pm

अति सुन्दर.............

Comment by Neeraj Neer on May 12, 2014 at 10:16pm

सुन्दर ग़ज़ल ..

Comment by coontee mukerji on May 12, 2014 at 3:25pm

अच्छी गज़ल है. हार्दिक बधाई.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 12, 2014 at 10:05am

बहुत सुंदर रचना आदरणीय अखंड जी, बधाई स्वीकारें

Comment by Meena Pathak on May 11, 2014 at 10:31pm

बहुत खूब .... सादर बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service