दिल पर काबू ना रहे मिल जाते जो नैन
धड़कन धड़कन से मिले दिल को मिलता चैन |
दिल की यह मजबूरियाँ समझे कोई ख़ास
धड़कन बढ़ जाती अगर आता है वो पास |
तेरी धड़कन के बिना मेरी भी बेकार
दोनों की मिलती अगर नैया लगती पार |
तेरी धड़कन के सिवा कुछ भी ना अनमोल
सूना है सारा जगत इसका क्या है मोल |
धड़कन से चालू हुआ धड़कन पर सब बंद
मोल समय का जान लो यह इसकी पाबंद |
धड़कन चलती है अगर जीने की हो आस
अपनों का जो साथ हो बढ़ता है विश्वास ||
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
सच कहूँगी तो कड़वा लगेगा पर कहे बिना रह नहीं सकूंगी अत:क्षमा याचना सहित कहना चाहूंगी किआपने दोहे लिखने का प्रयास किया है भाव बहुत अच्छे है पर इस विधा की मुख्य बात इसमें चार चरण होते है ,पहले व् तीसरे चरण के बाद यति होनी चाहिए इसका न होना अखर रहा है ,पहली पंक्ति के अंत में एक पाई व् दूसरी के अंत में दो पाई का चिन्ह नहीं होना भी इस छंद को विधानुरूप नहीं दर्शा रहा ,बस इस कमी को दूर कर दिया जाय तो बहुत उम्दा दोहे हो सकते है
आदरणीय नरेन्द्र जी हार्दिक आभार
शुक्रिया करन जी ...सादर
शुक्रिया अन्नपूर्णा जी
सरिता जी आपने धड़कन की सरिता बहा दी। वास्तव में धड़कनke वगैर दिल का कोई अस्तित्व ही नहीं।
वाह !! bahutहुत सुंदर दोहा वली , बधाई आपको आ0 सरिता भाटिया जी ।
शुक्रिया कल्पना दी ,स्नेह बनाये रखें
शुक्रिया विन्दु जी
धड़कन से चालू हुआ धड़कन पर सब बंद
मोल समय का जान लो यह इसकी पाबंद....वाह! एक नए विषय पर सुंदर दोहावली के लिए आपको हार्दिक बधाई प्रिय सरिता जी
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