आँचल में ममता लिए, भरा ह्रदय में प्यार
क्या कोई भी दे सका,माँ सा प्यार दुलार
माँ सा प्यार दुलार, जिसे पाने को तरसे,
सर पर माँ जब हाथ,रखे तो प्रभु भी हरषे
कह लक्ष्मण मत टोक, लगाती टीका काजल
जीवन हो आबाद, मिले जब माँ का आँचल |
(2)
दोहा देखो छंद में, सबका है सरताज,
सभी शब्द हो शिल्प मय, तभी सजेगी साज
तभी सजेगी साज, छंद को गाकर देखे
मन में भरते भाव, सूर तुलसी के लेखे
लक्ष्मण ले आनंद, कबीर रचे वह मोहे
देना सबको मान, रचे जो लय में दोहे |
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
छंद पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार श्री गिरिर्राज भंडारी जी
आपका हार्दिक आभार श्री जितेन्द्र गीत भाई
आदरणीय लक्ष्मण भाई , सुन्दर कुंडलिया रचना के लिये आपको बधाइयाँ ॥
बहुत सुंदर भाव, माँ तो माँ होती है जिसका सबसे ऊँचा स्थान होता है. बधाई आपको आदरणीय लक्ष्मण जी
दोने छंद रचना सराहने के लिए आपका बहुत बहुत आभार श्री अरुण शर्मा "अनंत" जी
आँचल में ममता लिए, और ह्रदय में प्यार.----------उचित सुझाव है अरुण भाई
आपका हार्दिक आभार श्री राम शिरोमणि पाठक जी
आदरणीय लक्ष्मण सर जी दोनों ही कुण्डलिया छंद बहुत अच्छे बन पड़े हैं मेरी ओर से बधाई प्रेषित है स्वीकार कीजिये.
आँचल में ममता लिए, भरा ह्रदय में प्यार.. आदरणीय क्या भरा की जगह भरे नहीं होना चाहिए था या फिर ऐसा भी कह सकते थे
आँचल में ममता लिए, और ह्रदय में प्यार... यह केवल मात्र एक सुझाव है जो मुझे लगा क्षमा कीजियेगा. सादर
आपका हार्दिक आभार आदरणीया कुन्ती मुकर्जी | सादर
माँ के आँचल को लेकर रचित छंद पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार श्री जवाहर लाल सिंह जी
छंद सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार श्री श्यामनारायण वर्मा जी
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