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प्रीति की रीत

2122 1221 2212
चोट खाते रहे मुस्‍कुराते रहे
प्‍यार के फूल हम तो खिलाते रहे
अब भरोसा नहीं जिन्‍दगी का हमे
दर्द सह कर उसे हम मनाते रहे
जिन्‍दगी प्‍यार उनको सिखाती रही
और वो जिन्‍दगी को भुलाते रहे
साथ वो चल दिये है किसी गैर के
प्रीत की रीत हम तो निभाते रहे
आज की रात हम मर न जाये कही
पास अपने उसे हम बुलाते रहे
बात जब है चली बेवफाई की तो
बेवफा कह हमे वह बुलाते रहे
बात उनकी करे ना करे हम मगर
याद मे उन की आँसू बहाते रहे

 
मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी

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Comment by Akhand Gahmari on May 21, 2014 at 12:06pm

आपके उत्‍साहवर्धन एवं मार्गदर्शन के हम सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्‍वीकार करे आदरणीयशिज्जु शकूर जी

Comment by Akhand Gahmari on May 21, 2014 at 12:06pm

आपके उत्‍साहवर्धन एवं मार्गदर्शन के हम सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्‍वीकार करे आदरणीय arun kumar nigam जी

Comment by Akhand Gahmari on May 21, 2014 at 12:01pm

आपके उत्‍साहवर्धन एवं मार्गदर्शन के हम सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्‍वीकार करे आदरणीय जितेन्‍द्र गीत जी

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 21, 2014 at 11:08am

बहुत सुंदर आदरणीय अखंड जी, हार्दिक बधाइयाँ आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on May 21, 2014 at 10:33am

पहले-पहले प्यार की स्मृतियों में डूबी रचना केलिए बधाई....................


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 20, 2014 at 9:32pm

बहुत खूब आदरणीय अखंड भाई बधाई स्वीकार करें
सादर,

Comment by coontee mukerji on May 20, 2014 at 8:21pm

जिन्‍दगी प्‍यार उनको सिखाती रही
और वो जिन्‍दगी को भुलाते रहे.....बहुत अच्छी पक्तियाँ है..आपको सुंदर रचना केलिये हार्दिक बधाई है.

Comment by Shyam Narain Verma on May 19, 2014 at 5:58pm
सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर.............
Comment by Madan Mohan saxena on May 19, 2014 at 4:54pm

बहुत खूब,सुन्दर

Comment by Meena Pathak on May 19, 2014 at 8:12am

क्या बात है .. बहुत खूब ... ढेरों बधाई स्वीकारें | सादर 

कृपया ध्यान दे...

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