‘’ हमारे रिश्ते ‘’
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अगर रिश्ते सच में हैं , तो
मीलों की दूरियाँ
कमज़ोर नही करती रिश्तों की मज़बूती
मिलन की प्यास बढाती ज़रूर है
रिश्ते , मृग मरीचिका नहीं होते
कि , पास पहुँचें तो नज़र न आयें
भावनायें प्यासी रह जायें
रिश्ते
रेत मे लिखे इबारत भी नही होते
कि ,सफल हो जायें, जिसे मिटाने में
समय के समुद्र में उठती गिरती कमज़ोर लहरें भी
रिश्ते
शिला लेख की तरह होते हैं
समय के समुद्र में सुनामी भी आये
वैसे ही लिखे मिलेंगे ,
लहरों के शांत हो जाने के बाद
और मुझे यक़ीन है
हमारे रिश्ते रेत पर लिखे इबारत नहीं
शिला लेख हैं
जिसे समय या मीलों की दूरियाँ
मिटा नहीं सकेंगी
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मौलिक एवँ अप्रकशित
Comment
आदरणीय सौरभ भाई , रचना को मान देने के लिये आपका आभार , और आपकी अमूल्य सलाह के लिये आपका दिल से शुक्रिया ॥ ऐसे ही ज्ञान वर्धन करते रहियेगा ॥आपका पुनः आभार ॥
आपकी प्रस्तुत कविता संप्रेषणीयता के हिसाब से सही है. आजकी वास्तविकता को स्वर मिला है.
परन्तु, कथ्य में दुहराव खलता है, आदरणीय गिरिराजभाईजी.
नीचे वाक्यांश देखें -
रिश्ते
रेत मे लिखी इबारत भी नही होते
कि ,सफल हो जायें, जिन्हें मिटाने में
समय के समुद्र में उठती गिरती कमज़ोर लहरें भी
आपको प्रस्तु्त प्रयास के लिए बधाइयाँ,
सादर
आदरणीया अन्नपूर्णा जी , रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
वाह !!! आ0 भण्डारी जी क्या खूब रचना हुई है , बधाई आपको ।
आदरणीय बड़े भाई विज़य जी , रचना के अनुमोदन के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
आदरणीय डा. कँवर भाई , रचना की सराहना के लिये आपका शुक्रिया ॥
आदरणीय ब्ड़े भाई , रचना की सराहना और अनुमोदन के लिये आपका आभार ॥
आदरणीय राम भाई , आपका हार्दिक आभार ॥
सच्चे रिश्तों को आपने इस रचना में बहुत अच्छा परिभाषित किया है। हार्दिक बधाई, आदरणीय भाई गिरिराज जी।
भंडारी महोदय, रिश्तों के अर्थ को बेमिसाल भाबों में पिरोया है बहुत बहुत बधाई Iसच्चे रिश्ते वास्तव में रेट पर लिखी और तनिक लहरों से मिटती इवारत नहीं मगर चटान पर उकेरी अमिट इवारत की तरह होते हैं Iबहुत खूब I
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