For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आखिर कैसा देश है ये ? --- अरुण श्री

आखिर कैसा देश है ये ?

- कि राजधानी का कवि संसद की ओर पीठ किए बैठा है ,

सोती हुई अदालतों की आँख में कोंच देना चाहता है अपनी कलम !

गैरकानूनी घोषित होने से ठीक पहले असामाजिक हुआ कवि -

कविताओं को खंखार सा मुँह में छुपाए उतर जाता है राजमार्ग की सीढियाँ ,

कि सरकारी सड़कों पर थूकना मना है ,कच्चे रास्तों पर तख्तियां नहीं होतीं !

पर साहित्यिक थूक से कच्ची, अनपढ़ गलियों को कोई फर्क नहीं पड़ता !

एक कवि के लिए गैरकानूनी होने से अधिक पीड़ादायक है गैरजरुरी होना !

 

आखिर कैसा देश है ये ?

- कि बाँध बनकर कई आँखों को बंजर बना देतें हैं ,

सड़क बनते ही फुटपाथ पर आ जाती है पूरी की पूरी बस्ती !

कच्ची सड़क के गड्ढे बचे हुआ बस्तीपन के सीने पर आ जाते हैं !

बूढी आँखों में बसा बसेरे का सपना रोज कुचलतीं है लंबी-लंबी गाडियाँ !

समय के सहारे छोड़ दिए गए घावों को समय कुरेदता रहता है अक्सर !

 

आखिर कैसा देश है ये ?

- कि बच्चे देश से अधिक जानना चाहतें हैं रोटी के विषय में ,

स्वर्ण-थाल में छप्पन भोग और राजकुमार की कहानियों को झूठ कहते हैं ,

मानतें हैं कि घास खाना मूर्खता है जब उपलब्ध हो सकती हो रोटी ! 

छब्बीस जनवरी उनके लिए दो लड्डू ,एक छुट्टी से अधिक कुछ भी नहीं !

 

आखिर कैसा देश है ये ?

- कि माट्साब कमउम्र लड़कियों को पढाते हैं विद्यापति के रसीले गीत ,

मुखिया जी न्योता देते हैं कि मन हो तो चूस लेना मेरे खेत से गन्ने !

इनारे पर पानी भरती उनकी माँ से कहते है कि तुम पर गई है बिल्कुल !

दुधारू माँ अपने दुधमुहें की सोच कर थूक घोंट मुस्कुराती है बस -

कि अगर छूट गई घरवाले की बनिहारी भी तो बिसुकते देर न लगेगी !

 

आखिर कैसा देश है ये ?

- कि विद्रोही कविताएँ राजकीय अभिलेखों का हिस्सा नहीं है !

तेज रफ़्तार सड़कें रुके हुए फुटपाथों के मुँह पर धुँआ थूक रही हैं !

बच्चों से कहो देशप्रेम तो वो पहले रोटी मांगते हैं !

कमउम्र लड़कियों से पूछो उनका हाल तो वो छुपातीं हैं अपनी अपुष्ट छाती !

माँ के लिए बेटी के कौमार्य से अधिक जरूरी है दुधमुहें की भूख !

 

वातानुकूलित कक्ष तक विकास के आँकड़े कहाँ से आते हैं आखिर ?

 

कविताओं के हर प्रश्न पर मौन रहती है संसद और सड़कें भी !

निराश कवि मिटाने लगता है अपने नाखून पर लगा लोकतंत्र का धब्बा !
.
.
.
...................................................................................... अरुण श्री !
"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 734

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 3, 2014 at 1:11pm

वर्तमान में देश और समाज के हालातों को बखूबी बयां करती अभिव्यक्ति, बधाई स्वीकारें आदरणीय अरुण श्री जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 2, 2014 at 4:31pm

कुछ तल्ख सवाल करती, आमजन को झकझोरती, कुछ गरीबी से उत्पन्न लाचारी और लाचार लोगों की व्यथा, साथ ही साथ आज की राजनीतिक व सामाजिक व्यवस्था की कमियाँ, आपकी इस कविता में बखूबी उभर रहे हैं, इस रचना के लिये आपको बहुत बहुत बधाई

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 1, 2014 at 5:37pm

अरुण श्री जी

आपकी रचना अंतस को झकझोरती है i कवि ह्रदय जो परिस्थितियों से समझौता कर मूक और उदास बैठा है  i वह आपकी रचना से अवश्य अनुप्राणित होगा i आपके पास भाव भी है और शब्द शक्ति भी  i मै आपको ऐसी मर्मस्पर्शी  कविताके लिये हदय से धन्यवाद देता हूँ i  सादर i  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय सुरेन्द्र जी, पोस्ट पर आने व सुझाव देने के लिए हार्दिक आभार।"
11 minutes ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय आज़ी भाई जी हौसला अफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया जी।। सादर जी।"
11 minutes ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय तिलकराज जी सादर नमस्कार जी। ग़ज़ल पर आने के लिए और ग़ज़ल को इतना समय देने के लिए आपका बहुत बहुत…"
13 minutes ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय दयाराम जी सादर नमस्कार जी। ग़ज़ल के प्रयास के लिए बधाई स्वीकार करें जी। तक़रार इस्त्रिलिंग है…"
2 hours ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीया रिचा यादव जी सादर नमस्कार जी। ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा हुआ बधाई स्वीकार करें जी। दिल में…"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय रिचा यादव जी, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है बधाई स्वीकार करें।"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय निलेश "नूर" जी, आप लाजवाब ग़ज़ल लिखते है। बधाई स्वीकार करें।"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है। बधाई स्वीकार करें।"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय तमाम आज़ी जी, उम्दा ग़ज़ल है आपकी। बधाई स्वीकार करें। आदरणीय तिलकराज जी के सुझावों से ये और…"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल — 221 1221 1221 122 है प्यार अगर मुझसे निभाने के लिए आकुछ और नहीं मुखड़ा दिखाने के लिए…"
5 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय धामी सर इस ज़र्रा नवाज़ी का"
5 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय रिचा जी इस ज़र्रा नवाज़ी का"
5 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service