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गजल दिल जलाते है

1222   1222   1222  1222
कहाँ से अजनबी दिल के हमारे पास आते है/
हमारे दिल में बस कर वो हमारा दिल चुराते है

हमारी‍ जिन्‍दगी भी तो अमानत होे गई जिनकी
वही अब जिन्‍दगी में आग जाने क्‍यों लगाते है


जहर खाना नहीं जीवन बड़ा अनमोल सुन लो तुम

न खाये हम जहर तो क्‍या करें वो दिल जलाते है


हमारे सपनो को अपना कभी वो समझते ले‍किन
न जाने क्‍यों सभी सपने हमारे  तोड़ जाते है



नहीं आते कभी वो पास अब जो रोज मिलते थे
लगा इल्‍जाम अखण्‍ड पर उसे क्‍यों वो भुलाते है


मौलिक व अप्रकाशित अखंड गहमरी

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 4, 2014 at 1:08pm

जहर खाना नहीं जीवन बड़ा अनमोल सुन लो तुम

न खाये हम जहर तो क्‍या करें वो दिल जलाते है  ...जलते हुए दिल के साथ भी जीना ही है जीवन वाकई अनमोल है 

 समझते ले‍किन  ...आदरणीय यहाँ मुझे अपने समझ के अनुरूप थोडा संदेह हो रहा है   १२२२ के मामले में ..

लगा इल्‍जाम अखण्‍ड पर उसे क्‍यों वो भुलाते है ..इस लाइन को भी एक बार देख लें .मुझे गेयता बाधित लग रही है म अ खं ड.. सही जानकारी बिद्व्त्जनो से ही मिलेगी सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 4, 2014 at 9:50am

आदरणीय अखण्ड भाई , सुन्दर गज़ल के लिये आपको बधाइयाँ ॥ आ. वीनीस भाई ने जो कहा है , जरूर ध्यान दीजियेगा ॥

Comment by annapurna bajpai on June 4, 2014 at 7:43am

सुंदर  गजल के लिए बधाई स्वीकारें , आ0 अखंड जी । 

Comment by वीनस केसरी on June 4, 2014 at 4:34am

शानदार प्रस्तुति है

दो मिसरों पर अदा० राजेश कुमारी जी द्वारा बात प्रस्तुत की गई है आप निवारण करेंगे तो मेरी शंका का भी समाधान होगा
सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 3, 2014 at 10:41am

बढ़िया ग़ज़ल लिखी है अखंड जी एक विनम्र सुझाव ---हमारे सपनो को अपना कभी वो समझते ले‍किन--इस मिसरे की तक्तीअ दुबारा जांच लें शायद आपने समझते को ---२१२ में बाँधा है जब की समझते मेरे हिसाब से १२२ होना  चाहिए मकते की निचली पंक्ति को भी जांच लें ..आप थोड़े से शब्दों के फेर बदल से दुरुस्त कर लेंगे मुझे ऐसा विश्वास है बहरहाल हार्दिक बधाई ग़ज़ल पर. 

Comment by Akhand Gahmari on June 2, 2014 at 10:59am

उत्‍साहवर्धन एवं मागर्दशन के हम सदैव आकांक्षी है प्रणाम स्‍वीकार करे आदरणीय डा गोपाल नारायण श्रीवास्‍तव जी यह आपके आर्शीवााद का फल है

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 1, 2014 at 5:27pm

कोशिशे  ही कामयाब होती है दोस्त  i आपकी लगन अच्छी है i

कृपया ध्यान दे...

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