1222 1222 1222 1222
कहाँ से अजनबी दिल के हमारे पास आते है/
हमारे दिल में बस कर वो हमारा दिल चुराते है
हमारी जिन्दगी भी तो अमानत होे गई जिनकी
वही अब जिन्दगी में आग जाने क्यों लगाते है
जहर खाना नहीं जीवन बड़ा अनमोल सुन लो तुम
न खाये हम जहर तो क्या करें वो दिल जलाते है
हमारे सपनो को अपना कभी वो समझते लेकिन
न जाने क्यों सभी सपने हमारे तोड़ जाते है
नहीं आते कभी वो पास अब जो रोज मिलते थे
लगा इल्जाम अखण्ड पर उसे क्यों वो भुलाते है
मौलिक व अप्रकाशित अखंड गहमरी
Comment
जहर खाना नहीं जीवन बड़ा अनमोल सुन लो तुम
न खाये हम जहर तो क्या करें वो दिल जलाते है ...जलते हुए दिल के साथ भी जीना ही है जीवन वाकई अनमोल है
समझते लेकिन ...आदरणीय यहाँ मुझे अपने समझ के अनुरूप थोडा संदेह हो रहा है १२२२ के मामले में ..
लगा इल्जाम अखण्ड पर उसे क्यों वो भुलाते है ..इस लाइन को भी एक बार देख लें .मुझे गेयता बाधित लग रही है म अ खं ड.. सही जानकारी बिद्व्त्जनो से ही मिलेगी सादर
आदरणीय अखण्ड भाई , सुन्दर गज़ल के लिये आपको बधाइयाँ ॥ आ. वीनीस भाई ने जो कहा है , जरूर ध्यान दीजियेगा ॥
सुंदर गजल के लिए बधाई स्वीकारें , आ0 अखंड जी ।
शानदार प्रस्तुति है
दो मिसरों पर अदा० राजेश कुमारी जी द्वारा बात प्रस्तुत की गई है आप निवारण करेंगे तो मेरी शंका का भी समाधान होगा
सादर
बढ़िया ग़ज़ल लिखी है अखंड जी एक विनम्र सुझाव ---हमारे सपनो को अपना कभी वो समझते लेकिन--इस मिसरे की तक्तीअ दुबारा जांच लें शायद आपने समझते को ---२१२ में बाँधा है जब की समझते मेरे हिसाब से १२२ होना चाहिए मकते की निचली पंक्ति को भी जांच लें ..आप थोड़े से शब्दों के फेर बदल से दुरुस्त कर लेंगे मुझे ऐसा विश्वास है बहरहाल हार्दिक बधाई ग़ज़ल पर.
उत्साहवर्धन एवं मागर्दशन के हम सदैव आकांक्षी है प्रणाम स्वीकार करे आदरणीय डा गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी यह आपके आर्शीवााद का फल है
कोशिशे ही कामयाब होती है दोस्त i आपकी लगन अच्छी है i
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