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2122 1212 22/112

मुल्क़ में किस्सा इक नया तो हो

अब अज़ीयत की इंतिहा तो हो                अज़ीयत =यातना

 

ग़म से किसको मिली नजात यहाँ

मर्ज़ कहते हो फिर दवा तो हो

 

जी उठेगा फिर अपनी राख से पर

वो मुकम्मल अभी जला तो हो

 

दीनो-ईमाँ की बात करते हैं

हो हरम दिल में बुतकदा तो हो                      हरम =मस्जिद,  बुतकदा =मंदिर

 

ज़ह्र अपनी ज़बान से छूकर

कह रहे हैं कि तज़्रिबा तो हो

 

रुख़ हवा का बदल गया है “शकूर”

किस तरफ चलना है पता तो हो  

 

- मौलिक व अप्रकाशित

 

 

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Comment by शिज्जु "शकूर" on June 7, 2014 at 7:01pm

आदरणीय विजय जी रचना की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 7, 2014 at 7:01pm

आदरणीय डॉ आशुतोष सर ग़ज़ल को मान देने के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूँ

Comment by विजय मिश्र on June 7, 2014 at 6:10pm
बेतरीन और साफ लहजे में अपनी बात रखती हुई खूबसूरत रचना |बधाई शिज्जू भाई
Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 7, 2014 at 12:40pm

रुख़ हवा का बदल गया है “शकूर”

किस तरफ चलना है पता तो हो  ..बेहतरीन 

आपकी तमाम बेहतरीन ग़ज़लों में से मेरी एक और पसंदीदा ग़ज़ल ..इस शानदार राचन के लिए तहे दिल बधाई सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 6, 2014 at 7:59pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई आपका तहेदिल से शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on June 6, 2014 at 7:59pm

आदरणीय निलेश भाई आपका हार्दिक आभार


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Comment by शिज्जु "शकूर" on June 6, 2014 at 7:58pm

आदरणीय सुशील सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on June 6, 2014 at 7:58pm

आदरणीया कुंती जी आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 6, 2014 at 7:58pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर आपका तहे दिल से शुक्रिया

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 6, 2014 at 12:06am

जी उठेगा फिर अपनी राख से पर

वो मुकम्मल अभी जला तो हो................वाह! बहुत ही सुंदर, बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय शिज्जू जी

 

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